॥ श्री रघुवंशम् ॥
॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’॥
☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #7 (36-40) ॥ ☆
अज ने वधू इंदुमति की सुरक्षार्थ, टेरा पिता तुल्य सेना सचिव को
घेरा तथा श्शत्रुसेना को जैसे महाउर्मिनद श्शेष गंगा की गति को ॥ 36॥
पैदल से पैदल, रथी से रथी, अश्वारोही भिड़े अश्वारोहियों से
गजासीन योद्धा गजासीनियों से, सभी प्रतिभरों तुल्य बल रोधियों से ॥ 37॥
तूर्यों के धननाद ने बिन कहे कुछ, कुल नाम औं ख्याति वृतांत सारे
बाणों की भाषा में ही आत्म परिचय, बताते धनुर्धरों ने बाण मारे ॥ 38॥
अश्वों के खुर से उड़ी धूल रण में पहियों से रथ के घनीभूत होती
हाथी के कानों की फड़कन से फैली लगी रोकने नेत्रो से सूर्य ज्योति ॥ 39॥
ध्वज वायु में लहरते मत्स्य की भाँति, रज रूप जल को निगलते उगलते –
परिवेश में फैलते नवल जल पीते, सभी मछलियों से दिखे खुश मचलते ॥ 40॥
© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈