श्री सुधीर सिंह सुधाकर
ई-अभिव्यक्ति में सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री सुधीर सिंह सुधाकर जी का हार्दिक स्वागत है। आपका परिचय आपके ही शब्दों में –
“45 वर्ष से लेखन के पश्चात लगता है अभी कुछ नहीं जाना, कुछ नहीं सीख पाया; लेकिन विद्यार्थी बनकर सीखने का जो आनंद है वह आनंद शब्द से परे है।
कोलकाता में जन्म कोलकाता से लेकर अलीगढ़ तक शिक्षा ग्रहण करने के पश्चात दिल्ली में नौकरी जीवन बीमा में 30 वर्ष गुजारने के पश्चात सेवानिवृत्ति के उपरांत 16 घंटे साहित्य सेवा यही बस काम शेष है और इसी में विद्यार्थी की तरह लगा रहता हूं।” – सुधीर सिंह सुधाकर, दिल्ली
? मन्नू भंडारी – अंतिम प्रणाम ?
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मन्नू भंडारी जी का जन्म मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले में 3 अप्रैल 1931 को हुआ था। बचपन में उनको प्यार से सभी मन्नू कहते थे। उनका नाम महेंद्र कुमारी था। लेखन के लिए उन्होंने अपने तखल्लुस नाम की जगह मन्नू नाम का चुनाव किया और शादी के बाद भी मन्नू भंडारी के नाम से जानी जाने लगी।
उनके पिता हिंदी के जाने-माने लेखक सुख संपत राय के द्वारा मन्नू का व्यक्तिगत व्यक्तित्व निर्माण होता रहा। शिक्षा प्रथम रसोई द्वितीय को वे प्रमुखता देते थे। एक आदर्शवादी पिता एक क्रोधी स्वभाव के पिता से उन्हें बहुत कुछ सीखने को मिला। उनका अपना प्रथम कहानी संग्रह मैं हार गई अपने पिताजी को समर्पित करते उन्होंने लिखा था ,”जिन्होंने मेरी किसी भी इच्छा पर कभी अंकुश नहीं लगाया” पिताजी को मनु की अपने पिता की नितांत श्रद्धा इसे स्पष्ट होती है। मनु भंडारी चार भाई बहन थे। मनु भंडारी जी का कहना था कोई व्यक्ति जन्म से बड़ा नहीं होता। बड़ा बनने के लिए सबसे बड़ा योगदान संस्कारों का होता है उसके बाद परिवेश का।
अजमेर में रहकर उन्होंने हाई स्कूल तथा इंटरमीडिएट की परीक्षा पास की कॉलेज की प्राध्यापिका शीला अग्रवाल ने अंग्रेज सरकार के विरोध में जब उन्हें उकसाया तो वह स्वतंत्र स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़ी।देश की स्वतंत्रता मिलने के बाद उन्होंने बीए की डिग्री ली। कोलकाता के विद्यालय बैलीगंज शिक्षा सदन में उन्होंने 9 साल बच्चों को पढ़ाया। कॉलेज में अध्यापन का भी कार्य किया। उनके पांच कहानी संग्रह दो उपन्यास दो नाटक तथा तीन बार रचनाएं प्रमुख है।
मन्नू भंडारी कहती थीं लेखन ने मुझे अपने निहायत निजी समस्याओं के प्रति ऑब्जेक्टिव हो ना हो वह वरना सिखाया है। उनके पति राजेंद्र यादव उनके संबंध में लिखते हैं व्यस्त के भाव छाछ में नारी के आंचल में दूध और आंखों में पानी दिखा कर उसने (मन्नू भंडारी) पाठकों की दया नहीं वसूली, वह यथार्थ के धरातल पर नारी का नारी की दृष्टि से अंकन करती है।
1957 में उनकी प्रथम कहानी संग्रह मैं हार गई के कहानी मैं हार गई कहानी पत्रिका में प्रकाशित हुई। मैं हार गई कहानी संग्रह में उनकी कुल बारह कहानियां संकलित हुई। जबकि 3 निगाहों की एक तस्वीर जो कि 1959 में आई। उसमें 8 कहानियां संग्रह थी। तीन निगाहों की एक तस्वीर कहानी संग्रह में नारी की गाथा है। जो दीर्घ अवधि तक बीमार पति की सेवा करती है। नायिका के व्यक्तित्व का सूक्ष्म मनोवैज्ञानिक अंकन उसके अंदर कहीं किया गया है। यही सच है 1966 में उनकी तीसरी कहानी संग्रह प्रकाशित हुई। इसमें 8 कहानी संग्रहित हैं। चौथा कहानी संग्रह एक प्लेट सैलाब 1968 में उनका प्रकाशित हुआ। नारी जीवन की समस्याओं पर आधारित 9 कहानियों का संग्रह भी उनका प्रकाशित हुआ। पांचवा कहानी संग्रह 1978 में प्रकाशित हुआ। जिसमें 10 कहानियां थी। मन्नू भंडारी की श्रेष्ठ कहानियां 1969 में प्रकाशित हुई। जिसे राजेंद्र यादव जी ने संपादित किया। नायक /खलनायक /विदूषक मन्नू भंडारी की 50 कहानियों का संग्रह मनु भंडारी द्वारा लिखित धारावाहिक___ रजनी की पटकथा इसमें संग्रहित है। जो दूरदर्शन पर एक समय धूम मचा कर रखी थी।
एक इंच मुस्कान 1969 में प्रकाशित हुई जिसमें राजेंद्र यादव और मन्नू भंडारी दोनों ने एक साथ काम किया। दोनों के द्वारा एक साथ लिखी गई एक मात्र रचना ज्ञानोदय पत्रिका में धारावाहिक में प्रकाशित किया गया। जिसमें अमर (राजेंद्र यादव) महिला पात्र के रूप में रंजना और अमला को (मनु भंडारी ) ने चित्रित किया है।
आपका बंटी 1971 में उपन्यास आया। महाभोज उपन्यास 1979 में आया जो सामाजिक उपन्यास था। स्वामी नाम का एक उपन्यास रूपांतरित उपन्यास की कहानी के आधार पर वह भी प्रकाशित हुआ। 1966 में मनु भंडारी ने बिना दीवारों का घर एकांकी लिखा।
उन्होंने अपने लेखन से महिला स्त्री पात्र के जरिए स्त्री को समझने का प्रयास किया। स्त्री विमर्श की जगह स्त्री जगत की समस्या को ही रख कर उन्हें उस पर चर्चा करना अच्छा लगता था।
2008 में उन्हें व्यास सम्मान प्राप्त हुआ।
कल 15/11/2021 को उनका निधन हो गया।
? स्व मन्नू भंडारी जी को ई- अभिव्यक्ति परिवार की ओर से विनम्र श्रद्धांजलि ?
© श्री सुधीर सिंह सुधाकर
दिल्ली
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈