श्री कमलेश भारतीय
(जन्म – 17 जनवरी, 1952 ( होशियारपुर, पंजाब) शिक्षा- एम ए हिंदी, बी एड, प्रभाकर (स्वर्ण पदक)। प्रकाशन – अब तक ग्यारह पुस्तकें प्रकाशित । कथा संग्रह – 6 और लघुकथा संग्रह- 4 । ‘यादों की धरोहर’ हिंदी के विशिष्ट रचनाकारों के इंटरव्यूज का संकलन। कथा संग्रह – ‘एक संवाददाता की डायरी’ को प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मिला पुरस्कार । हरियाणा साहित्य अकादमी से श्रेष्ठ पत्रकारिता पुरस्कार। पंजाब भाषा विभाग से कथा संग्रह- महक से ऊपर को वर्ष की सर्वोत्तम कथा कृति का पुरस्कार । हरियाणा ग्रंथ अकादमी के तीन वर्ष तक उपाध्यक्ष । दैनिक ट्रिब्यून से प्रिंसिपल रिपोर्टर के रूप में सेवानिवृत। सम्प्रति- स्वतंत्र लेखन व पत्रकारिता)
☆ आलेख ☆ राष्ट्रीय प्रेस दिवस विशेष – मीडिया: एक पांव जमीन पर, दूजा हवा में ☆ श्री कमलेश भारतीय ☆
(16 नवंबर राष्ट्रीय प्रेस दिवस पर विशेष आलेख)
मैं शहीद भगत सिंह के पैतृक गांव खटकड कलां के गवर्नमेंट आदर्श सीनियर सेकेंडरी स्कूल में प्रिंसिपल होने के साथ साथ पार्टटाइम रिपोर्टर था दैनिक ट्रिब्यून का। विधिवत जनसंचार की कोई क्लास नहीं लगाई लेकिन समाचार संपादक व शायर सत्यानंद शाकिर के शागिर्द की तरह पूरे ग्यारह साल हुक्का जरूर भरा और आज भी सीखने की कोशिश जारी है। जुनून इतना बढा कि प्रिंसिपल का पद छोड कर चंडीगढ उपसंपादक बन कर आ गया और फिर डेस्क से बोर होकर स्टाफ रिपोर्टर बन हिसार पहुंचा। खैर। स्कूल के साथ ही सटे घर के मालिक व विदेशों की धूल फांक कर आये एक साधारण किसान जीत सिंह ने जब पत्रकारिता की व्याख्या की तो थोडी हैरानी हुई। उसने कहा कि न्यूज का मतलब? नॉर्थ, ईस्ट वेस्ट, साउथ। यानी चारों दिशाओं में सही नजर रखकर खबर देना। खबरदार करना। अरे… इतनी उम्मीद है पत्रकार से? सब सही, सब सच दिखाना या देना? इसीलिए लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ माना और कहा जाता है। शब्द में जो ब्रह्म की शक्ति है वह शायद मीडिया के लिए ज्यादा है। रोज हम पत्रकार शब्दबेधी बाण चलाते हैं और पिछले चार दशक से मैं भी कलम के उन वीरों में शामिल हूं। क्या से क्या हो गया मीडिया? कहां से कहां तक का सफर तय किया मीडिया ने? जो चहूंओर के समाचार देता था वह चार अतिरिक्त पन्नों यानी लोकल न्यूज में ही सिमट कर रह गया? कांगडा की खबर हिसार में नहीं मिलती तो हिसार की कांगडा में नहीं मिलती। यानी सिमट गयी पत्रकारिता। फिर काहे की सामाजिक शर्म? प्रभाष जोशी ने यह बात लिखी थी अपनी विदाई पर कि हम पत्रकार और कुछ शायद न बिगाड सकें लेकिन नेताओं में सामाजिक शर्म तो ला ही देते हैं।
मैंने पत्रकारिता पर सोशल मीडिया में दो वाक्य पढे-पहले छप कर अखबार बिकते थे। अब बिक कर अखबार छपते हैं। ओह। इतना बिकाऊ हो गया क्या मीडिया? वह आजाद कलम पूंजीपतियों के इशारों पर नाचने लगी? आज हर आदमी यह कहता है कि मीडिया बिकाऊ है। यह नौबत कैसे और क्यों आई? हम यहां तक कैसे पहुंचे? क्या हमारे गिरने की कोई सीमा है? हमारी जिम्मेवारी कौन तय करेगा? हम धूल फांक कर, गली, शहर, कूचे फलांग कर सच्ची रिपोर्ट लिखते हैं। फिर वह रद्दी की टोकरी में कैसे फेंक दी जाती है? पेज थ्री फिल्म एक सच्चाई के करीब फिल्म थी। माफिया के बारे में लिखने वालों की जान ले ली जाती है। सच कहने पर आग मच जाती है। इसीलिए तो सुरजीत पातर ने कहा – ऐना सच न बोल के कल्ला यानी अकेला रह जावें। क्या पत्रकार अकेला चलने या रह जाने से डरता है? शहीद भगत सिंह के पुरखों के गांव पर जब धर्मयुग में मेरा लम्बा आलेख आया तब मेरी नौकरी पर बन आई थी लेकिन मेरी मदद के लिए जंगबहादुर गोयल आगे आए जो नवांशहर में उपमंडल अधिकारी थे। आज भी खटकड कलां का शहीदी स्मारक और घर जैसे संभाला है उसमें मेरी छोटी सी कलम का योगदान है। इस आलेख के बाद ही स्मारक और घर की ओर सरकार का ध्यान गया।
इसी तरह एक टीवी स्टोरी में सच बोलने वाले पत्रकार की छुट्टी और झूठ लिखने वाले को भव्य सम्मेलन में पुरस्कार। इसी बात की ओर संकेत कि हम झूठ का मायावी संसार रच रहे हैं और सच से कोसों दूर जा रहे हैं। ये चुनाव सर्वेक्षण भी किसी के इशारे पर जनता को गुमराह करने वाले साबित हो रहे हैं। आखिर हम अपनी असली सूरत कब पहचानेंगे?
आइना मुझसे मेरी पहली सी सूरत मांगे।
मेरे अपने मेरे होने की निशानी मांगें।
बहुत कुछ कहने को है। कलम की ताकत बेकार न जाने दें। पहचानिए अपनी शब्दबेधी शक्ति। मारक शक्ति। बदल देने की शक्ति। इधर हरियाणा के चुनाव में जब एक टिक टॉक गर्ल के रूप में चर्चित प्रत्याशी के पक्ष में वरिष्ठ नेता निकले मैदान में तब मैंने सवाल किया कि आखिर ऐसी प्रत्याशी के लिए वोट मांगने निकलोगे तो फिर आपके बारे में जनता क्या सोचेगी? कुछ तो लिहाज कीजिए। और सचमुच मेरे संपादकीय के बाद वे वट्स अप पर सॉरी लिख गये तो मुझे संतोष हुआ कि अभी सच कहने की आग मुझमें बची है और बस यही आग जरूरी है। दुष्यंत कुमार के शब्दों में :
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।
हमें नकारात्मक शक्तियों के खिलाफ कलम उठानी है और नये नायक देने हैं जो समाज के लिए काम कर रहे हैं और करते रहेंगे।
© श्री कमलेश भारतीय
पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी
संपर्क : 1034-बी, अर्बन एस्टेट-।।, हिसार-125005 (हरियाणा) मो. 94160-47075
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
बहुत ही सुंदर रचनात्मक द्रृष्टीकोन सर बधाई