॥ श्री रघुवंशम् ॥
॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’॥
☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #8 (16-20) ॥ ☆
रघु तो सन्यासी बने, पुत्र बना सम्राट
धर्म के जैसे रूप दो – मोक्ष और उदय विराट ॥ 16॥
नीति निपुण जन मंत्रणा से अज बने अजेय
तत्व ज्ञान से मोक्ष पदपाना रघु का ध्येय ॥ 17॥
महाराज अज राज्य हित हुये धर्म आसीन
मनस्थिरता हेतु रधु हुये ध्यान तल्लीन ॥ 18॥
कोष-दण्ड-बल से किया अज ने सब आधीन
रघु भी योग – समाधि में हुये साधनालीन ॥ 19॥
अज ने अरियों के किये ध्वस्त समग्र प्रयास
ज्ञान – अग्नि से रघु ने भी किये कर्म सब नाश ॥ 20॥
© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈