श्री सुरेश पटवा
(श्री सुरेश पटवा जी भारतीय स्टेट बैंक से सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों स्त्री-पुरुष “, गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं । आज से प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकश। आज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “हबीब”।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश – ग़ज़ल # 6 – “हबीब” ☆ श्री सुरेश पटवा ☆
हम पर जान लुटाता ऐसा नहीं कोई हबीब,
दिलोजान से चाहता ऐसा नहीं कोई हबीब।
भरी जवानी गेसुओं की छांव छिनी जिससे,
दिखता हो जमाने में ऐसा नहीं कोई गरीब।
ज़हर पीने की क़ाबलियत नहीं किसी में,
दर्द कुछ पी सके ऐसा नहीं कोई दरीब।
आह से बर्फ पिघलती दर्दीले पहाड़ों की,
हमारे रोने से बदलेगा नहीं कोई नसीब।
बरसते आंसुओं से ही तो समंदर भरा है,
समझ कर खारा आता नहीं कोई करीब।
उदू की क़ैद में छटपटाए बुलबुल बेतहाशा,
जाकर छुड़ा ले उसे ऐसा नहीं कोई रक़ीब।
मुहब्बत में ज़ख़्म मिले ‘आतिश’ बेशुमार,
उसके घाव सहलाता ऐसा नहीं कोई तबीब।
हबीब-प्यारा
दरीब-प्रशिक्षित
तबीब-वैद्य
© श्री सुरेश पटवा
≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈