डॉ निशा अग्रवाल
☆ कविता – सोशल मीडिया ☆ डॉ निशा अग्रवाल ☆
सोशल मीडिया आया रे भैया,
सोशल मीडिया आया रे।
सूचनाओं का भंडार है लाया,
सबका जोश जगाया रे।।
भारी बस्ता उतर कमर से,
पलकों पर आ ठहरा है।
बच्चों के तन मन पर देखो,
रेडिएशन का पहरा है।।
किसको अपना जख्म बताऊं,
जख्म बहुत ही गहरा है।
खुद को बैद्य समझ रहा है,
ये संसार तो बहरा है।।
सवाल उठ रहे रोज है इस पर,
युवा ,मीडिया को उछाल रहे।
मनमर्जी चेहरे की सेल्फी,
पोस्ट मीडिया पर कर रहे।।
कौन कहां है,किधर बिजी है,
खबर दे रहा सबकी ये।
प्रतिस्पर्धी सनसनी खेज न्यूज़
सबकी मीडिया पर परोस रहे।।
चमक रहे धुंधले चेहरे,
भले ही हों उस पर पहरे।
मिले सूचना जब कोई तो,
राज खोलता ये गहरे।।
क्या खाया, क्या पीया
सबका हो रहा प्रचार यहां।
फेक न्यूज़ और ट्रोल का
गज़ब हो रहा प्रसार यहां।।
सोशल मीडिया बदल रहा है,
हर एक बन्दे की सोच।
वाट्सएप, ट्विटर, फ़ेसबुक, इंस्टा
सब पर कर रहा एप्रोच।।
सोशल मीडिया पर हर किसी का,
हंसी का सफर है जारी ।
कुछ शादी शुदा लोग बता रहे ,
खुद को बाल ब्रह्मचारी ।।
लोकतंत्र का पंचम स्तंभ,
बन बैठा सोशल मीडिया।
गलत फैंसले गवर्नमेंट के,
बदल रहा सोशल मीडिया।।
जो ना कह पाते थे कभी,
टी वी चैनल ,अखबार में अपनी बात।
आज सोशल मीडिया पर
बड़ी सहजता से रख रहे अपने जज्बात।।
बच्चे ,बूढ़े सब हो रहे ,
सोशल मीडिया पर बिजी।
कोई सुनाए अपनी व्यथा,
तो कोई सुनाए बत्तीसी।।
आधुनिकता के रंग में रंग,
हक़ीक़त से बना बैठे हम दूरी।
नकली दुनिया की अंधी दौड़ में,
दिखाबे की ये हाय कैसी मज़बूरी।।
सदुपयोग करें वरदान है ये,
दुरुपयोग से बनता अभिशाप है ये।
सोशल मीडिया आया है तब से,
लोगों के दिलों में छाया ये।।
© डॉ निशा अग्रवाल
एजुकेशनिस्ट, स्क्रिप्ट राइटर, लेखिका, गायिका, कवियत्री
जयपुर, राजस्थान
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
बहुत ही
बहुत ही बेहतरीन लेख,सोशल मीडिया पर