श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी के साप्ताहिक स्तम्भ “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है सजल “सकारात्मकता को खोजें… ”। अब आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।
मनोज साहित्य # 10 – सकारात्मकता को खोजें… ☆
सजल
समांत- आरों
पदांत- – की
मात्राभार- 16
खोई रौनक बाजारों की।
प्लेटें रूठीं ज्योनारों की।।
घोड़े पर दूल्हा है बैठा,
किस्मत फूटी इन क्वारों की।
सब पर कानूनी पाबंदी,
भूल गए हैं मनुहारों की।
मिलना जुलना नहीं रहा अब,
लगी लगामें सरकारों की।
करोना के जाल में उलझी,
नहीं गूँज अब जयकारों की।
संकट में भी बढ़ी दूरियाँ,
हालत बुरी है दीवारों की।
जन्म-मरण संस्कार गुम गए,
घटी रौनकें त्योहारों की ।
साँसों की अब बढ़ी किल्लतें,
नहीं व्यवस्था अंगारों की।
सकारात्मकता को खोजें,
खबरें झूठी अखबारों की।
© मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
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