आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’
(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि। संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित ‘सॉनेट – सौदागर’।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 71 ☆
☆ सॉनेट – सौदागर ☆
भास्कर नित्य प्रकाश लुटाता, पंछी गाते गीत मधुर।
उषा जगा, धरा दे आँचल, गगन छाँह देता बिन मोल।
साथ हमेशा रहें दिशाएँ, पवन न दूर रहे पल भर।।
प्रक्षालन अभिषेक आचमन, करें सलिल मौन रस घोल।।
ज्ञान-कर्म इंद्रियाँ न तुझसे, तोल-मोल कुछ करतीं रे।
ममता, लाड़, आस्था, निष्ठा, मानवता का दाम नहीं।
ईश कृपा बिन माँगे सब पर, पल-पल रही बरसती रे।।
संवेदन, अनुभूति, समझ का, बाजारों में काम नहीं।।
क्षुधा-पिपासा हो जब जितनी, पशु-पक्षी उतना खाते।
कर क्रय-विक्रय कभी नहीं वे, सजवाते बाजार हैं।
शीघ्र तृप्त हो शेष और के लिए छोड़कर सुख पाते।।
हम मानव नित बेच-खरीदें, खुद से ही आजार हैं।।
पूछ रहा है ऊपर बैठे, ब्रह्मा नटवर अरु नटनागर।
शारद-रमा-उमा क्यों मानव!, शप्त हुआ बन सौदागर।।
© आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’
१८-१२-२०२१
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