डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके अप्रतिम कालजयी दोहे।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 69 –  दोहे ✍

कितना क्या हम सह रहे,  किसे बताएं यार ।

जीवन नैया बह रही, बिना किसी पतवार।।

 

है शूकर – सी जिंदगी, जीते हैं इंसान।

फोटो उनकी खींचकर, लोग हुए धनवान।।

 

चूहे हैं अच्छे भले, बदतर है इंसान।

चूहे दानी है उन्हें, इनको नहीं मकान।।

 

ईश्वर अल्लाह एक है, अनगिन पूजा थान।

मगर आदमी के लिए, मुश्किल एक मकान।।

 

अनदेखा भगवान है, सुना नाम ही नाम ।

चाहे जितना लूटिए, ख्वाबों का गोदाम।।

 

रंग रंगी थी जिंदगी, हुई आज बदरंग।

 रिश्ते सारे काटते, जैसा जूता तंग।।

 

उद्घाटन की लालसा, करती गई कमाल ।

पांच बरस में खुल गई रुपयों की टकसाल ।।

 

हवामहल में बैठकर, देखा करें जमीन ।

जिनको समझा साधु-सा निकले वही कमीन।।

 

राजनीति के पंक में लिपटे राजा रंक।

एक  ध्येय सब का यही, मिले पुष्प पर्यंक।।

 

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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