श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा “रात का चौकीदार” महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत हैं एक अतिसुन्दर विचारणीय कविता “अजनबी हैं…”।)
☆ तन्मय साहित्य #112 ☆
☆ कविता – अजनबी हैं… ☆
अजनबी हैं, अपरिचय
बस एक यह पहचान है
बिन पते की मेढ़ पर
तैनात सजग मचान है।
गुलेलों से कंकड़ों के
वार फसलों पर
दिग्भ्रमित पंछी
पड़ी है गाज नस्लों पर
देखता हूँ मंसूबे
अच्छे नहीं उनके
कर रहे तकरार वे
बेकार मसलों पर
कलम की पैनी नजर का
इन सभी पर ध्यान है।
अजनबी हैं….
इन मचानों पर
उमड़ती घुमड़ती छाया
चार खंबों पर
टिकी है जर्जरी काया
डगमगाने भी लगे हैं
स्तंभ अब चारों
गीत फिर भी अमरता
का ही सदा गाया
हुआ तब वैराग्य जब
देखा कभी शमशान है।
अजनबी हैं……
है नहीं खिड़की
न दरवाजे, न दीवारें
विमल मन आकाश
हँसते चाँद औ’ तारे
बंद कर ताले,
हिफाजत चाबियों की फिर
ये अजूबे खेल लगते
व्यर्थ अब सारे
बोझ अब लगने लगे
रंगीन नव परिधान है।
अजनबी हैं……
© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश
मो. 9893266014
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈