॥ श्री रघुवंशम् ॥
॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’॥
☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #9 (71-75) ॥ ☆
सबेरे नगाड़ो की ध्वनि करते गज के वृहतकर्णतालों से जागे नृपति ने
मधुर पक्षी – चारण के कलरव के संगीत के श्रवण का लाभ पा भूपति ने॥ 71॥
फिर किसी रूरू मृग का अनुसरण करते, अनुचर अलक्षित महाराज दशरथ
थके फेन भरते हुये अश्व द्वारा गये पतसि-स्नाता तमसा नदी तट ॥ 72॥
तमसा में जलघट के भरने की आवाज सुन उसने हाथी की चिंघाड माना
राजा ने इससे ही श्शब्दानुसारी वहाँ बाण छोड़ा कठिन समझ जाना ॥ 73॥
‘मृगया में गजवध है वर्जित नृपति को ‘ – इस श्शास्त्र आज्ञा का करने उल्लधन
अनुचित किया – पर रजोगुणाच्छादित मना किये पथ पर भी करते पदार्पण॥ 74।
‘हा ! तात ‘ – यह दुखभरी सुन के वाणी, दौड़े गये, देखा मुनि सुत को आहत
राजा थे फिर भी गहन दुखहुआ, लगा जैसे कि शर से हुआ हृदय में क्षत॥ 75॥
© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈