श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
संजय दृष्टि – धूप
एसी कमरे में अंगुलियों के
इशारे पर नाचते तापमान में,
चेहरे पर लगा लो कितनी ही परतें,
पिघलने लगती है सारी कृत्रिमता
चमकती धूप के साये में,
मैं सूरज की प्रतीक्षा करता हूँ,
जिससे भी मिलता हूँ;
चौखट के भीतर नहीं,
तेज़ धूप में मिलता हूँ..!
© संजय भारद्वाज
7:22 बजे, 25.1.2020
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
संजयउवाच@डाटामेल.भारत
सूरज की प्रतीक्षा… तेज़ धूप में मिलना ..
पहचान के नए मापदंड! ?????
सूरज की तेज़ धूप मेंं घर की चौखट के बाहर किसी से मिलने के सही पैमाने का प्रयोग वास्तव में असली मुख दर्न्नन कराता है दिखावटी मुखवटों से कोसों दूर–
अभिनंदन -प्राकृतिक पैमाना जिसका साक्षीदार स्वयं सूर्य देवता .….