श्री आशीष कुमार
(युवा साहित्यकार श्री आशीष कुमार ने जीवन में साहित्यिक यात्रा के साथ एक लंबी रहस्यमयी यात्रा तय की है। उन्होंने भारतीय दर्शन से परे हिंदू दर्शन, विज्ञान और भौतिक क्षेत्रों से परे सफलता की खोज और उस पर गहन शोध किया है।
अस्सी-नब्बे के दशक तक जन्मी पीढ़ी दादा-दादी और नाना-नानी की कहानियां सुन कर बड़ी हुई हैं। इसके बाद की पीढ़ी में भी कुछ सौभाग्यशाली हैं जिन्हें उन कहानियों को बचपन से सुनने का अवसर मिला है। वास्तव में वे कहानियां हमें और हमारी पीढ़ियों को विरासत में मिली हैं। आशीष का कथा संसार ऐसी ही कहानियों का संग्रह है। उनके ही शब्दों में – “कुछ कहानियां मेरी अपनी रचनाएं है एवम कुछ वो है जिन्हें मैं अपने बड़ों से बचपन से सुनता आया हूं और उन्हें अपने शब्दो मे लिखा (अर्थात उनका मूल रचियता मैं नहीं हूँ।”)
☆ कथा कहानी ☆ आशीष का कथा संसार #72 – गलती स्वयं सुधारें ☆ श्री आशीष कुमार☆
एक बार गुरू आत्मानंद ने अपने चार शिष्यों को एक पाठ पढाया। पाठ पढाने के बाद वह अपने शिष्यों से बोले – “अब तुम चारों इस पाठ का स्वाध्ययन कर इसे याद करो। इस बीच यह ध्यान रखना कि तुममें से कोई बोले नहीं। एक घंटे बाद मैं तुमसे इस पाठ के बारे में बात करुँगा।“
यह कह कर गुरू आत्मानंद वहाँ से चले गए। उनके जाने के बाद चारों शिष्य बैठ कर पाठ का अध्ययन करने लगे। अचानक बादल घिर आए और वर्षा की संभावना दिखने लगी।
यह देख कर एक शिष्य बोला- “लगता है तेज बारिश होगी।“
ये सुन कर दूसरा शिष्य बोला – “तुम्हें बोलना नहीं चाहिये था। गुरू जी ने मना किया था। तुमने गुरू जी की आज्ञा भंग कर दी।“
तभी तीसरा शिष्य भी बोल पड़ा- “तुम भी तो बोल रहे हो।“
इस तरह तीन शिष्य बोल पड़े, अब सिर्फ चौथा शिष्य बचा वो कुछ भी न बोला। चुपचाप पढ़ता रहा।
एक घंटे बाद गुरू जी लौट आए। उन्हें देखते ही एक शिष्य बोला- “गुरूजी ! यह मौन नहीं रहा, बोल दिया।“
दुसरा बोला – “तो तुम कहाँ मौन थे, तुम भी तो बोले थे।“
तीसरा बोला – “इन दोनों ने बोलकर आपकी आज्ञा भंग कर दी।“
ये सुन पहले वाले दोनों फिर बोले – “तो तुम कौन सा मौन थे, तुम भी तो हमारे साथ बोले थे।“
चौथा शिष्य अब भी चुप था।
यह देख गुरू जी बोले – “मतलब तो ये हुआ कि तुम तीनों ही बोल पड़े । बस ये चौथा शिष्य ही चुप रहा। अर्थात सिर्फ इसी ने मेरी शिक्षा ग्रहण की और मेरी बात का अनुसरण किया। यह निश्चय ही आगे योग्य आदमी बनेगा। परंतु तुम तीनों पर मुझे संदेह है। एक तो तुम तीनों ने मेरी आज्ञा का उल्लंघन किया; और वह भी एक-दूसरे की गलती बताने के लिये। और ऐसा करने में तुम सब ने स्वयं की गलती पर ध्यान न दिया।
आमतौर पर सभी लोग ऐसा ही करते हैं। दूसरों को गलत बताने और साबित करने की कोशिश में स्वयं कब गलती कर बैठते हैं। उन्हें इसका एहसास भी नहीं होता। यह सुनकर तीनो शिष्य लज्जित हो गये। उन्होंने अपनी भूल स्वीकार की, गुरू जी से क्षमा माँगी और स्वयं को सुधारने का वचन दिया।
© आशीष कुमार
नई दिल्ली
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈