श्री सुरेश पटवा
(श्री सुरेश पटवा जी भारतीय स्टेट बैंक से सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों स्त्री-पुरुष “, गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं । आज से प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकश।आज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “देख लिया”।)
ग़ज़ल # 9 – “देख लिया” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’
राज़े मुहब्बत छुपा कर देख लिया,
हमने दिल लगा कर देख लिया।
लोगों के कहने को कुछ न मिला,
चुप को गले लगा कर देख लिया।
दिलजोई में जो कभी हमराज़ रहे,
उन्हें भी ग़ैर बना कर देख लिया।
दुनियावी लेनदेन में हमेशा कच्चे रहे,
मुहब्बत में दिल लुटा कर देख लिया।
दिल के सौदे में मोलभाव क्या करना,
ग़मों का हिसाब लगा कर देख लिया।
आँसू बचा कर क्या हासिल ‘आतिश’
सबने तुम्हें रुला रुला कर देख लिया।
दिल की झोली रही ख़ाली की ख़ाली,
खुद को समुंदर में डुबा कर देख लिया।
© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’
≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈