डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके अप्रतिम कालजयी दोहे।)
साप्ताहिक स्तम्भ – स्व डॉ गायत्री तिवारी जन्मस्मृति विशेष – लेखनी सुमित्र की # 70 – दोहे
मन मरुथल सा हो गया, बिखर गया संगीत ।
अश्रु -अश्रु अब गा रहा गायत्री का गीत।।
शब्द वहां बेमायने, जहां तीव्र अहसास ।
कितनी भी दूर ही रहे प्रिय लगता है पास।।
श्रद्धा बरसे आंख से, आँसू कहे जहान ।
आँसू में ही देख लो ,तुम अपना भगवान।।
जनक नंदिनी बंदिनी, व्याकुल हनुमत वीर ।
महावीर के नयन में, दिखा छलकता नीर।।
हाय कहां तुम चल दिए, ओ मेरे मनमीत।
बिना तुम्हारे लग रहा, आँसू भी भयभीत।।
सांस -सांस में अश्रु है, अश्रु -अश्रु में सांस ।
गैर हाज़िरी आपकी ,बनी याद की फांस।।
© डॉ राजकुमार “सुमित्र”
112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश
गुरुमाता स्व डॉ गायत्री तिवारी जी का आज जन्मस्मृति दिवस है। उन्हें ई- अभिव्यक्ति परिवार की और से विनम्र श्रद्धांजलि ??
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈