☆ पुस्तक चर्चा – महाकोशल – गोंडवाना का भूला बिसरा इतिहास – श्री सुरेश पटवा ☆ डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’ ☆
पुस्तक – महाकोशल – गोंडवाना का भूला बिसरा इतिहास ( पौराणिक काल से आधुनिक युग तक)
लेखक – श्री सुरेश पटवा
प्रकाशक – वंश पब्लिकेशन, भोपाल
मूल्य – रु.500/- हार्ड कवर
डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’
☆ “महाकौशल-गोंडवाना का भूला-बिसरा इतिहास : रोचक शोधपरक कृति” – डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’ ☆
हाथों में है, श्री सुरेश पटवा की कृति “महाकौशल -गोंडवाना का भूला-बिसरा इतिहास” की पांडुलिपि। आँखों में तैर रहा है अतीत। हाँ, लगभग तीस बरस पहले भेंट हुई थी श्री पटवा जी से, और उन्हें बुद्धिमान, कर्मठ, संवेदनशील बैंक अधिकारी के रूप में जाना। श्री पटवा के व्यवहार से उनकी साहित्यिक, सांस्कृतिक रूचि भी प्रकट हुई। किंतु वे लेखक हैं या हो सकते हैं इस तरह की कोई आशंका या सम्भावना दूर-दूर तक लापता थी। विचित्र किंतु सत्य की भाँति पिछले तीन बरस में सात पुस्तकों के प्रकाशन और पाठकों द्वारा पसंदगी ने उनके लेखक रूप की मुनादी कर दी। और -अब “महाकौशल-गोंडवाना का भूला-बिसरा इतिहास”।
बहुधा लोग हिमालय की चोटियों, घाटियों, नदियों, तराई के जंगलों के प्रति आकर्षित होते हैं, पर्यटन की योजना बनाते हैं। किंतु सतपुड़ा और विंध्याचल वृष्टिछाया में रह जाते हैं। जिज्ञासु प्रकृति, शोधप्रिय, पर्यटन प्रेमी और अध्ययनशील पटवा जी बाल्यकाल से उन संस्कारों से प्रेरित होते रहे, जो उन्हें देनवा के तट पर जन्मने तथा देनवा और पलकमती की रेत पर खेलते, नहाते, चटनी रोटी खाते और किताबों को पढ़ते हुए एक स्वप्नलोक रचता था- पहाड़ों का पहाड़ा पढ़ने का स्वप्न।
राजा मदन सिंह के संदर्भ में इतिहासकारों में मतभेद है किंतु गोंडवंश के प्रतापी राजा संग्राम सिंह का अस्तित्व सभी ने स्वीकार किया है और यह भी कि उनके पुत्र दलपत शाह का विवाह दुर्गावती से हुआ। दुर्गावती के पिता कौन थे- महोबा के राजा शालिवाहन या कालिंजर के कीर्तिसिंह, इस प्रश्न पर भी विद्वान एकमत नहीं है। इस सम्बंध में पटवा जी ने शोधपूर्ण लेखन को प्रधानता दी है।
श्री सुरेश पटवा
संग्राम सिंह के बारे में किंवदंतियों के बजाय उन्होंने शोधपूर्ण लेखन को प्राथमिकता दी है। इससे पुस्तक की प्रामाणिकता पुष्ट हुई है। दुर्गावती का विवाह सिंगौरगढ़ में हुआ था, वहीं संग्राम शाह और दलपत शाह की मृत्यु हुई और वीरनारायण सिंह का जन्म हुआ था। भारत सरकार के संस्कृति विभाग ने सिंगौरगढ़ और परिवेश के सज्जा के लिए अभी-अभी 26 करोड़ रुपए देना मंज़ूर किए हैं। इससे सिंगौरगढ़ की महत्ता को समझा जा सकता है। मदनमहल के बारे में भ्रांतियाँ हैं। यह एक ऐसी छोटी इमारत है जो चट्टान पर बनी है। इसका उपयोग सुरक्षा चौकी या ग्रीष्म काल में विश्राम स्थल के रूप में किया जाता रहा होगा। यह न तो महल है और न महल जैसा आयतन और न सुविधा।
अभी तक इस क्षेत्र का सिलसिलेबार सम्पूर्ण इतिहास रोचक ढंग से नहीं लिखा गया है। आधे-अधूरे फुटकर वर्णन पढ़ने को मिलते हैं। वे भी बिना किसी प्रामाणिकता के। महाकोशल और गोंडवाना का प्रामाणिक इतिहास जिस तरह से एक ओजपूर्ण रोचक शैली में श्री पटवा ने संयोजित किया है। वह आने वाली पीढ़ियों के लिए अपने क्षेत्र के इतिहास को जानने समझने का एक उत्तम साधन रहेगा।
श्री सुरेश पटवा जी ने अपनी प्रकृति के अनुकूल बौद्धिक चातुर्य से सतपुड़ा, गोंडवाना, महाकौशल और पूरे क्षेत्र का किताबों और घुमंतू तरीक़ों से अनुसंधान करके एक उत्कृष्ट कृति “महाकौशल -गोंडवाना का भूला-बिसरा इतिहास” रची है।
चौरागढ़ भी गोंड राज्य की राजधानी रही है। मेरे पूर्वज जब उत्तर प्रदेश से मध्य प्रदेश आए तब उन्हें चौरागढ़ क़िले में ही आश्रय और राजगुरु का मान मिला था। इस क़िले को देखकर यह नहीं लगता कि उसका निर्माण संग्राम शाह ने कराया होगा। पटवा जी ने सभी दृष्टियों से महाकौशल के इतिहास के संदर्भ भी वर्णित किए हैं। आलेख खोजपूर्ण है।
डॉ.राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’
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अद्भुत
बेहतरीन अभिव्यक्ति