डॉ. ऋचा शर्मा
(डॉ. ऋचा शर्मा जी को लघुकथा रचना की विधा विरासत में अवश्य मिली है किन्तु ,उन्होंने इस विधा को पल्लवित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी । उनकी लघुकथाएं और उनके पात्र हमारे आस पास से ही लिए गए होते हैं , जिन्हें वे वास्तविकता के धरातल पर उतार देने की क्षमता रखती हैं। आप ई-अभिव्यक्ति में प्रत्येक गुरुवार को उनकी उत्कृष्ट रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है स्त्री विमर्श पर आधारित हृदय को झकझोरने वाली लघुकथा ‘सिहरन’. डॉ ऋचा शर्मा जी की लेखनी को इस विचारणीय लघुकथा रचने के लिए सादर नमन।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संवाद # 81 ☆
☆ लघुकथा – सिहरन… ☆
आशा! चल तेरा कस्टमर आया है।
बिटिया तू बैठ, मैं अभी आई काम करके।
जल्दी आना।
थोडी देर बाद फिर आवाज – आशा! आ जल्दी, कस्टमर है।
बिटिया तू खेल ले, मैं अभी आई काम करके।
हूँ —।
बिटिया तू खाना खा ले, मैं अभी आई काम करके।
हूँ – उसने सिर हिला दिया ।
ना जाने कितनी बार आवाज आती और आशा सात – आठ साल की बिटिया को बहलाकर नीचे चली जाती।
ऐसे ही एक दिन – बिटिया तू पढाईकर, मैं बस अभी आई काम करके।
अम्माँ ! अकेले कितना काम करोगी तुम? मैं भी चलती हूँ तेरे साथ काम करने। तुम कहती हो ना कि मैं बडी हो गई हूँ?
वह लडखडाकर सीढियों पर बैठ गई।
© डॉ. ऋचा शर्मा
अध्यक्ष – हिंदी विभाग, अहमदनगर कॉलेज, अहमदनगर.
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जिंदगी का दर्दनाक सच.
बेहद दर्दनाक।
हमलोग किस समाज मे जी रहे हैं।??