श्री जय प्रकाश पाण्डेय
(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में सँजो रखा है।आज प्रस्तुत है एक विचारणीय लघुकथा ‘भूख…!’ )
☆ लघुकथा # 121 ☆ भूख…! ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆
सास बहू की जमकर लड़ाई हुई।
सास ने बहू के मायके वालों को गरियाया, बहू ने सास के बेटे और आदमी को कुछ कुछ कहा। (समझदार को इशारा काफी)
दोनों थक गई थी, मुंह फुलाए बैठीं थी।दोपहर को दोनों को खूब भूख लगी।
सास ने गरमागरम दाल बनाईं। बहू ने स्वादिष्ट सब्जी बनाईं।
दोनों खाने बैठीं, तो सास ने सब्जी की तारीफ कर दी, तुरंत बहू ने मुस्कुराते हुए खूब सारी गरमागरम दाल सास के कटोरे में भर दी। जब सास की जीभ जल गई तो बहू ने दाल की तारीफ कर दई।
© जय प्रकाश पाण्डेय
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