डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके अप्रतिम कालजयी दोहे।)
साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 73 – दोहे
नीर नयन का छलकता, छूमंतर विश्वास ।
सोच रहा हूं हाथ में, पारस मणि हो काश!।।
दर्द दबा था हृदय में, मिली नयन की राह ।
आँसू मेरी आंख के, बनते गए गवाह ।।
आँसू रहते आंख में, मिले मान-सम्मान ।
वरना होगी हैसियत, ढहता हुआ मकान ।।
मिले सुदामा कृष्ण से, हुआ खूब सत्कार ।
जल से पग धोए नहीं, धोये आँसू धार ।।
शरसैया पर भीष्म थे, ध्यान मग्न तल्लीन।
रोए थे इतना अधिक, आँसू हुए विलीन ।।
आँसू पुल मानिंद है, जोड़ सकें संबंध ।
अंतर्गत संभावना, जैसे सुमन सुगंध।।
© डॉ राजकुमार “सुमित्र”
112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश
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