(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ” में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है। आज प्रस्तुत है श्री विवेक जी द्वारा लिखित एक विचारणीय कविता ‘अच्छे दिन !’ । इस विचारणीय रचना के लिए श्री विवेक रंजन जी की लेखनी को नमन।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 141 ☆
कविता – अच्छे दिन !
जगती आँखों देखे सपने, वो लायेंगे अच्छे दिन
इस आशा में की वोटिंग कि, अब आयेंगे अच्छे दिन
शेयर का बढ़ गया केंचुंआ, अनुमानो की आहट से
रुपया कुछ मजबूत हुआ है, अब आयेंगे अच्छे दिन
हर परिवर्तन समय चाहता, अब वे ऐसा कहते हैं
पूछे वोटिंग वाली स्याही, कब आयेंगे अच्छे दिन
बूढ़ी आँखें बाट जोहती, उम्मीदों को सजा सजा
गिन गिन कर दिन बीत रहे हैं, कब आयेंगे अच्छे दिन
योजनायें बनती बहुतेरी, ढ़ेरों गुम हो जाती हैं
सबको पूरा करना होगा, तब आयेंगे अच्छे दिन
सरकारें बस राह बनाती, और दिशा दिखलाती हैं
चलना स्वयं हमीं को होगा, तब आयेंगे अच्छे दिन
नेता अनुकरणीय बनेंगे, जनता भी अनुशासित होगी
रामराज्य सा शासन होगा, जब आयेगें अच्छे दिन
सुरसा सी बढती आबादी, लील रही है साऱी उन्नति
जब आबादी सीमित होगी, तब आयेंगे अच्छे दिन
भ्रष्ट व्यवस्था दाग बदनुमा, सबको इसको धोना होगा
भ्रष्टाचार मिटेगा जब, तब आयेंगे अच्छे दिन
© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
मो ७०००३७५७९८
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈