श्री सुरेश पटवा
(श्री सुरेश पटवा जी भारतीय स्टेट बैंक से सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों स्त्री-पुरुष “, गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं । आज से प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकश।आज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “गिरगिट रंग लोग”।)
ग़ज़ल # 13 – “गिरगिट रंग लोग” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’
ढलती उम्र मुझको याद आते हैं लोग,
हूक जब उठती है याद आते हैं लोग।
बहुत कोशिशें की हम क़दम होकर चलूं,
तेज चाल आगे निकल जाते हैं लोग।
अपने क्या मुझे तो ग़ैर भी अच्छे लगे,
बस मुझमें ही कुछ कमी पाते हैं लोग।
ढूंढता रहा मैं अपना पन परायों में,
पास आते क्यों बदल जाते हैं लोग।
कई जन्मों की दुश्मनी पाल कर जीते,
कुछ दिन को दुनियां में आते हैं लोग।
पूछते नही ताउम्र हाल ए दिल मुझसे,
मातम पुर्सी को घर चले आते हैं लोग।
हासिल हो जाता मुझे भी थोड़ा सा फन,
गिरगिट जैसा रंग बदल जाते हैं लोग।
ज़िंदगी भर सबका भला सोचते आतिश,
फिर भी तुम्हें ख़ुदगर्ज़ कह जाते हैं लोग।
© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’
≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈