सुश्री सुषमा सिंह
☆ कविता ☆
(प्रस्तुत है सुश्री सुषमा सिंह जी की भावप्रवण कविता “कविता” । सुश्री सुषमा सिंह जी की कविता काव्यात्मक परिभाषा के लिए मैं निःशब्द हूँ। कविता छंदयुक्त हो या छंदमुक्त हो यदि कविता में संवेदना ही नहीं तो फिर कैसी कविता? )
प्राणों को नवजीवन दे, जड़ में भी स्पंदन भर दे
दर्द, चुभन, शूल हर ले, मन को रंगोली के रंग दे
उसको कहते हैं कविता
हर नर को जो राम कर दे, शबरी के बेरों में रस भर दे
जो हर राधा को कान्हा दे, हर-मन को जो मीरा कर दे
उसको कहते हैं कविता
तम जीवन में ज्योति भर दे, मूकता को भी कंपन दे
भावनाओं को जो मंथन दे, प्रियतम को मौन निमंत्रण दे
उसको कहते हैं कविता
संबंधों को जो बंधन दे, संस्कृति संस्कार समर्पण दे
भटकन को नई मंज़िल दे, जीवन संकल्पों से भर दे
उसको कहते हैं कविता
डगमग पैरों को थिरकन दे, सिखर धूप फागुन कर दे
मन में नई उमंग भर दे, सुंदर सपनों को सच कर दे
उसको कहते हैं कविता
यह भावों की निर्झरिणी है,जिस पथ यह बहती जाती है
मरुथल को यह मधुबन कर दे, इसको कहते हैं कविता
आखर आखर हों भाव भरे, हर-मन बस ऐसा हो जाए
तो चलो रचें ऐसी कविता, हर मानव मानव हो जाए।
© सुषमा सिंह
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वाह बहुत शानदार कविता