श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

आज से प्रत्येक बुधवार और रविवार के सिवा प्रतिदिन श्री संजय भारद्वाज जी के विचारणीय आलेख एकात्मता के वैदिक अनुबंध : संदर्भ- उत्सव, मेला और तीर्थयात्रा श्रृंखलाबद्ध देने का मानस है। कृपया आत्मसात कीजिये। 

? संजय दृष्टि – एकात्मता के वैदिक अनुबंध : संदर्भ- उत्सव, मेला और तीर्थयात्रा – भाग – 1 ??

“भारत जमीन का टुकड़ा नहीं, जीता जागता राष्ट्रपुरुष है। हिमालय मस्तक है, कश्मीर किरीट है, पंजाब और बंगाल दो विशाल कंधे हैं। पूर्वी और पश्चिमी घाट दो विशाल जंघायें हैं। कन्याकुमारी इसके चरण हैं, सागर इसके पग पखारता है। यह चन्दन/वन्दन की भूमि है, अभिनन्दन की भूमि है, यह तर्पण की भूमि है, यह अर्पण की भूमि है। इसका कंकड़-कंकड़ शंकर है, इसका बिन्दु-बिन्दु गंगाजल है। हम जियेंगे तो इसके लिये मरेंगे तो इसके लिये।”

-भारतरत्न अटलबिहारी वाजपेयी

राष्ट्र की भारतीय अवधारणा :

भारत के पूर्व प्रधानमंत्री भारतरत्न अटलबिहारी वाजपेयी का अक्षर-अक्षर ऊर्जावान उपर्युक्त कथन राष्ट्र की भारतीय अवधारणा का मूर्त रूप है। भारतीय दर्शन में राष्ट्र की अवधारणा अन्य किसी भी दर्शन की तुलना में अत्यंत उदार, विस्तृत, प्रगल्भ, सदाशय एवं प्राणवान है। ‘कंट्री’ या ‘स्टेट’ किसी भूभाग के टुकड़े तक सीमित रह जाते हैं किंतु राष्ट्र उस भूभाग के निवासियों के जीवनमूल्यों के आधार पर बनता है। यहाँ राष्ट्र के लिए जीना अर्थात सांस्कृतिक, सामाजिक, आध्यात्मिक, भाषाई, मनोवैज्ञानिक संबंधों के लिए जीना। जैसे स्थूल शरीर में सूक्ष्म निवास करता है उसी प्रकार बृहत्तर राष्ट्र की आत्मा है नागरिक। 

अटल जी का उपर्युक्त कथन न केवल इस अवधारणा को संपुष्ट करता है अपितु राष्ट्र और नागरिक में अद्वैत स्थापित कर राष्ट्र को समाज का मुखिया भी घोषित कर देता है। फलस्वरूप नागरिक राष्ट्र के साथ विलयित होकर एकात्म हो जाता है।

एकात्मता और एकता :

ये दोनों शब्द सामान्यत: समान अर्थ में प्रयोग होते हैं। चलन में एक जैसा अर्थ होने पर भी  दोनों शब्दों के भावात्मक संसार में धरती-आकाश का अंतर है। एकता, यूनिटी या इंटिग्रिटी तक ठहर जाती है जबकि एकात्मता चराचर को एक भाव से निहारती है।

इस अंतर को एक दृष्टांत के माध्यम से समझा जा सकता है। संत नामदेव महाराज, ठाकुर जी को  दैनिक भोग लगाने के लिए रोटियाँ बना रहे थे। अभी पहली रोटी बनी थी। घीलड़ी से चम्मच में घी लिया, रोटी को चुपड़ते कि एकाएक कहीं से एक कुत्ता प्रकट हुआ और रोटी लेकर भाग खड़ा हुआ। महाराज जी ने आव देखा न ताव, कुत्ते का पीछा करने लगे।  अद्भुत दृश्य  है। कुत्ता आगे-आगे भाग रहा है, नामदेव जी महाराज पीछे-पीछे चम्मच में घी लिये दौड़ रहे हैं। दृश्य को देखकर जगत हँसता है। किसी भलेमानस ने कहा,  “महाराज जी, जाने दीजिए। अब यह कुत्ता आपके हाथ थोड़े ही आयेगा। यह रोटी उसके भाग्य की ही है। क्यों रोटी छीनने उसके पीछे व्यर्थ दौड़ लगा रहे हैं?” नामदेव जी महाराज के नेत्रों से टपटप अश्रु गिरने लगे। कहा, “मैं तो रोटी को घी चुपड़ने चम्मच में घी लिये दौड़ रहा हूँ। मेरा हरि सूखी रोटी कैसे खायेगा?”

गोस्वामी तुलसीदास श्रीरामचरितमानस में लिखते हैं,

जड़ चेतन जग जीव जत सकल राममय जानि।

बंदउँ सब के पद कमल सदा जोरि जुग पानि॥7(ग)॥

अर्थात जगत में जितने जड़ और चेतन जीव हैं, सबको राममय जानकर मैं उन सबके चरणकमलों की सदा दोनों हाथ जोड़कर वन्दना करता हूँ।

यही कारण है कि भारतीय दर्शन में अंतर्निहित एकात्म भाव को नमन करते हुए लेखक ने एकात्मता शब्द का प्रयोग किया है।

क्रमश: ….

©  संजय भारद्वाज

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
image_print
3 1 vote
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

5 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments
सुशील कुमार तिवारी

अद्भुत रचना

Sanjay k Bhardwaj

धन्यवाद आदरणीय।

अलका अग्रवाल

राष्ट्र और नागरिक में अद्वैत स्थापित कर नागरिक को राष्ट्र का मुखिया घोषित कर नागरिक और राष्ट्र में एकात्म भाव स्थापित करता अप्रतिम आलेख। अद्वितीय, अद्भुत।

Sanjay k Bhardwaj

धन्यवाद आदरणीय।

वीनु जमुआर

एकता, एकात्मता, राष्ट्र एवं अध्यात्म ! ???