हेमन्त बावनकर

☆ शब्द मेरे अर्थ तुम्हारे – 10 ☆ हेमन्त बावनकर

☆ प्रेम, युद्ध और राजनीति

यदि

‘प्रेम’ और ‘युद्ध’ में

सब ‘उचित’ है*

और

प्रेम, युद्ध और राजनीति में भी

सब ‘उचित’ है

इसका तात्पर्य है कि,

‘राजनीति’ में

सब ‘उचित’, ‘अनुचित’ 

और

सब ‘अनुचित’, ‘उचित’ ।

 

संभवतः

लोकतान्त्रिक समाज में

परस्पर ‘प्रेम’ के लिए

स्त्री और पुरुष का होना आवश्यक नहीं।  

‘युद्ध’ के लिए

राष्ट्रों का होना आवश्यक नहीं।  

और

परस्पर ‘राजनीति’ के लिए भी

राष्ट्रों का होना आवश्यक नहीं।  

 

संभवतः

लोकतान्त्रिक समाज में

धर्म, जाति और मानवीय संवेदनाओं  

की भुजाओं से निर्मित

‘त्रिकोण’ के तीन कोण हैं

प्रेम, युद्ध और राजनीति।  

 

अब

आप स्वयं तय करें  

कि आप

‘त्रिकोण’ के अंदर हैं,

‘त्रिकोण’ के बाहर हैं

या

तटस्थ हैं।

 

  * “All is fair in love in war” (प्रेम में सब उचित है) भावना का सबसे प्रथम उपयोग 1579 में प्रकाशित कवि जॉन लिली के उपन्यास “Euphues: The Anatomy of Wit” में किया गया था।   स्त्रोत – इंटरनेट

 

© हेमन्त बावनकर, पुणे 

2 फ़रवरी  2022

मो 9833727628

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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Shyam Khaparde

सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति

डॉ भावना शुक्ल

बेहतरीन अभिव्यक्ति

Sanjay k Bhardwaj

बहुत अच्छी रचना।

Mukta Mukta

बहुत सुंदर, सार्थक व सटीक अभिव्यक्ति।

Prabha Sonawane

सुंदर कविता ?…..हम तो तटस्थ है ।