॥ श्री रघुवंशम् ॥
॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’॥
☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #12 (21-25) ॥ ☆
सर्गः-12
एक बार छाया सघन तरूतल सहित प्रमोद।
थके हुये से सो रहे राम सिया की गोद।।21।।
तभी इन्द्र-सुत काक बन आया वहाँ जयन्त।
रख कुदृष्टि छू सिया को नभ में उड़ा अनन्त।।22।।
मारा बाण इषीक तब, यह घटना सुन राम।
क्षमा माँगने पर किया एक नेत्र बेकाम।।23।।
चित्रकूट है निकट अति जहाँ भरत का वास।
यह विचार हरिणों भरा छोड़ा वह वन खास।।24।।
रह नक्षत्रों बीच ज्यों वर्षा बीते भानु।
किया राम ने रह वहाँ, दक्षिण दिशा प्रयाण।।25।।
© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈