(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ” में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है। )
आज प्रस्तुत है श्रद्धा सुमन – स्वर साम्राज्ञी लता ।
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 144 ☆
श्रद्धा सुमन – स्वर साम्राज्ञी लता
स्वर साम्राज्ञी कोकिल कंठी
हम सब का है प्यार लता
भारत रत्न, रत्न भारत का
गीतो का सुर, सार लता ।
रागो का जादू, जादू गजल का
सरगम की लय, तार लता,
तबले की धिन् पर, सितारों की धड़कन,
नगमों की रस धार लता ।
बनारस घराना, जयपुर तराना,
गीतो का इकरार लता,
बैजू सुना था बावरा वो,
तानसेन दीदार लता।
सरहद की रेखा से सुर बड़ा है,
नूपुर की झंकार लता
भारत पाक लाख दुश्मन हों
जनता की सरकार लता ।
तुम्हारा ये जाना न माने जमाना
रहेगी सदा गुलजार लता
© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
मो ७०००३७५७९८
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈