(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ” में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है। )
आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता रंगोली।
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 145 ☆
कविता – रंगोली
त्यौहार पर सत्कार का
इजहार रंगोली
उत्सवी माहौल में,
अभिसार रंगोली
खुशियाँ हुलास और,
हाथो का हुनर हैं
मन का हैं प्रतिबिम्ब,
श्रंगार रंगोली
धरती पे उतारी है,
आसमां से रोशनी,
है आसुरी वृत्ति का,
प्रतिकार रंगोली
बहुओ ने बेटियों ने,
हिल मिल है सजाई
रौनक है मुस्कान है,
मंगल है रंगोली
पूजा परंपरा प्रार्थना,
जयकार लक्ष्मी की
शुभ लाभ की है कामना,
त्यौहार रंगोली
संस्कृति का है दर्पण,
सद्भाव की प्रतीक
कण कण उजास है,
संस्कार रंगोली
बिन्दु बिन्दु मिल बने,
रेखाओ से चित्र
पुष्पों से कभी रंगों से
अभिव्यक्त रंगोली
धरती की ओली में
रंग भरे हैं
चित्रो की भाषा का
संगीत रंगोली
अक्षर और शब्दों से,
हमने भी बनाई
गीतो से सजाई,
कविता की रंगोली
© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
मो ७०००३७५७९८
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈