डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके अप्रतिम कालजयी दोहे।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 77 –  दोहे ✍

तब के नेता और थे, अब के नेता और ।

लुटा गए सर्वस्व वे, खींच रहे हैं कौर।।

 

अध: पतित हम हो गए, नए-नए है ढंग ।

वस्त्र हीनता ओढ़ कर, बनते फिरे दबंग।।

 

पूर्वोत्तर नींदे हुई, सफल हुए संथाल ।

अमृतसर में उग रहे, संशय के शैवाल।।

 

बदनाम ‘बार बाला’ हुई, राजनीति सरनाम।

वास्तव में है एक ही, दोनों ही के नाम।।

 

आजादी आई नहीं, आजादी के बाद।

‘होरी’ की सर पंचियत, सपने की बकवाद।।

 

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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Subedarpandey

यथार्थ अभिव्यक्ति बधाई अभिनंदन अभिवादन

डॉ भावना शुक्ल

बेहतरीन अभिव्यक्ति