प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी द्वारा रचित एक भावप्रवण ग़ज़ल “अमर विश्वास के बल पर”। हमारे प्रबुद्ध पाठक गण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे। )
☆ काव्य धारा 69 ☆ गजल – ’अमर विश्वास के बल पर’ ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆
सुनहरी जिन्दगी के स्वप्न देखे सबने जीवन भर
सुहानी भोर की पर रश्मियाँ कम तक पहुँच पाई।।
रहीं सजती सँवरती बस्तियाँ हर रात सपनों में
और दिल के द्वार पै बजती रही हर रोज शहनाई।।
भरी पैंगें सदा इच्छाओं ने साँसों के झूलों पर
नजर भी दूर तक दौड़ी सितारों से भी टकराई।।
मगर उठ-गिर के सागर की लहर सी तट से टकराके
हमेशा चोट खा के अनमनी सी लौट फिर आई।।
मगर ऐसे में भी हिम्मत बिना हारे जो जीते हैं
भरोसे की कली मन की कभी जिनकी न मुरझाई।।
कभी तकदीर से अपनी शिकायत जो नहीं करते
स्वतः हट जाती उनकी राह से हर एक कठिनाई।।
समय लेता परीक्षा पर किया करता प्रशंसा भी
विवश हार उससे जीत भी आती है शरमाई।।
अमर अपने सुदृढ़ संकल्प औ’ विश्वास के बल पर
सभी ने अपनी मनचाही ही सुखद मंजिल सदा पाई।।
© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी भोपाल ४६२०२३
मो. 9425484452
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈