श्री सुरेश पटवा
(श्री सुरेश पटवा जी भारतीय स्टेट बैंक से सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों स्त्री-पुरुष “, गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं । आज से प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकश।आज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “ख़ैरात …”।)
ग़ज़ल # 17 – “ख़ैरात…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’
बात तो उनसे होती है मगर वो बात नहीं होती,
अब वैसी दिलचस्प हमारी मुलाक़ात नहीं होती।
मसरूफ़ियत बन चुकी शातिर अन्दाज़ की सौतन
साथ होकर भी कोई बात ए ज़ज़बात नहीं होती।
जुबां तो खूब चलती है दोनों की देर तलक,
अजीब बात है मगर कोई बात ही नहीं होती।
पहले पूरी रात गुज़र ही जाती थी बातों में,
अब बात के इंतज़ार में ख़त्म रात नहीं होती।
जुबां उनकी अब खुलती है बहुत मुश्किल से,
आँखों आँखों में भी उनसे बात नहीं होती।
अश्कों से दामन भीग जाता था बातों-बातों में,
अब आँख भर आती हैं मगर बरसात नहीं होती।
बदल चुके जमाने के रिवाज कुछ इस क़दर,
किसी को ढाई हर्फ़ों की अता ख़ैरात नहीं होती।
दामन फैलाए बैठे हैं कब से इश्क़ की महफ़िल में,
आतिश दिल की दिल से कोई बात नहीं होती।
© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’
≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈