श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
प्रत्येक बुधवार और रविवार के सिवा प्रतिदिन श्री संजय भारद्वाज जी के विचारणीय आलेख एकात्मता के वैदिक अनुबंध : संदर्भ – उत्सव, मेला और तीर्थयात्रा श्रृंखलाबद्ध देने का मानस है। कृपया आत्मसात कीजिये।
संजय दृष्टि – एकात्मता के वैदिक अनुबंध : संदर्भ- उत्सव, मेला और तीर्थयात्रा भाग – 18
श्रद्धाभाव के साथ मनाई जाती है। वटपूर्णिमा अथवा वटसावित्री को वटवृक्ष को मन्नत के धागे बाँधकर चिरायु कर दिया जाता है। पीपल, आँवला को पूजकर प्रदान की जाती पवित्रता 24 बाय7 ऑक्सीजन का स्रोत बनती है। वटपूर्णिमा का एक आयाम लेखक की इस कविता में देखिये,
लपेटा जा रहा है
कच्चा सूत
विशाल बरगद
के चारों ओर,
आयु बढ़ाने की
मनौती से बनी
यह रक्षापंक्ति
अपनी सदाहरी
सफलता की गाथा
सप्रमाण कहती आई है,
कच्चे धागों से बनी
सुहागिन वैक्सिन
अनंतकाल से
बरगदों को
चिरंजीव रखती आई है!
इसी भाँति तुलसी विवाह प्रकृति में चराचर की एकात्मता का उत्कृष्ट उदाहरण है।
योग दिवस ‘सर्वे संतु निरामया’ की चैतन्य प्रतीति है। गुरु पूर्णिमा आषाढ़ मास की पूर्णिमा को मनाई जाती है। इसे आदिगुरु महर्षि वेदव्यास की जयंती के रूप में मनाया जाता है। अपने गुरु, मार्गदर्शक, शिक्षक को ईश्वर का स्थान देने का साहस केवल वैदिक संस्कृति ही कर सकती है।
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः,
गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः॥
कबीर ने गुरु को ईश्वर से भी उच्च स्थान दिया।
गुरु गोविन्द दोऊ खड़े , काके लागू पाय|
बलिहारी गुरु आपने , गोविन्द दियो बताय||
ये सब प्रतिनिधि रूप से कुछ त्योहारों का वर्णन किया है। किसी छोटे आदिवासी टोले से लेकर बड़े समुदाय तक हरेक के अपने पर्व हैं। हरेक एकात्मता और सामासिकता का जाज्वल्यमान प्रतीक है।
क्रमश: ….
© संजय भारद्वाज
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
संजयउवाच@डाटामेल.भारत
वट सावित्री व्रत पर वट का पूजन उनको बनाते रखने में वह चिरंजीवी करने सदैव सक्षम रहा है। गुरु पूर्णिमा पर गुरु को ईश्वर से ऊंचा दर्जा देना गुरु की महत्ता दर्शाता है। अप्रतिम आलेख।