श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य# 110 ☆
☆ पुस्तक चर्चा – सोनपरी – श्री रमेश सिंह यादव ‘मौन’ ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद” ☆
पुस्तक का नाम – सोनपरी
रचना कार – श्री रमेश सिंह यादव ‘मौन’
विधा – हिंदी काव्य।
प्रकाशक – नोशन प्रेस
मूल्य– ₹ 135
उपलब्ध – अमेज़न लिंक >> सोनपरी फ्लिपकार्ट लिंक >> सोनपरी
☆ पुस्तक चर्चा – श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद” ☆
☆
यह वृत्तांत नहीं है कोरा,
यह जीवन की जीवंत परिभाषा।
सोन परी अब लौट गई घर,
बची रही केवल अभिलाषा।
☆
एहसास कराती मानवता की,
खुद मानवता की थी परिभाषा।
सोन परी थी सोने जैसी,
उम्मीद किरण की आशा।
☆
असमय छोड़ गई वह सबको,
और हिया में दे गई पीर।
जब जब करता याद उसे,
तब मेरा मन होता अधीर।
☆
लिखते पढ़ते सोन परी को,
आंखें मेरी भर आई,।
उसके संग जो समय बिताया ,
मेरी स्मृतियों में उतर आई।
☆
रचनाकार – सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”
यूँ तो हिंदी साहित्य जगत में रचनाएं होती रही है जो विद्वत समाज द्वारा तथा पाठक वर्ग द्वारा सराही जाती रही है, उन्ही कृतियों के बीच कभी कभी ऐसे रचनाकार या उनकी कृतियां हाथों में आ जाती है जो बरबस दिमाग से होती हुई दिल में उतर जाती है, और सबसे महत्त्वपूर्ण भूमिका होती आवरण पृष्ठ की जो सहज में ही पाठक को आकृष्ट तो करता ही है, लेखन सामग्री के बारे मूक शब्दों बहुत कुछ आभास करा देता है और यही उक्ति चरितार्थ होती दीख रही है सोनपरी के बारे में। बाकी ज्यादा लिखना तो कटोरी भर पानी में चांद को समेटने जैसा टिट्टिभ प्रयास है बाकी साहित्य का पूर्ण आनंद लेने के लिए इस कृति का आदि से अंत तक पढ़ना आवश्यक है, यह लेखक के दृढ़ इक्षाशक्ति का परिचायक भी है, इसके सारे अध्याय सोनपरी के जीवन का दर्शन है जो कभी गुदगुदाती है तो कभी भावुक कर जाती है।
यह हर पुस्तकालय की शोभा बढ़ाने में सक्षम है और हम कामना करते हैं कि साहित्यकार श्री रमेश सिंह यादव “मौन” जी इसी तरह साहित्य सेवा में तन्मयता के साथ अग्रसर हो कर अपने साहित्य के द्वारा समाज के सही रास्ता दिखाते रहेंगे। हम उनके उज्वल भविष्य की मंगल मनोकामना करते हैं।
© सूबेदार पांडेय “आत्मानंद”
संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208, मोबा—6387407266