॥ श्री रघुवंशम् ॥
॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’॥
☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #13 (36 – 40) ॥ ☆
सर्गः-13
और है मुनी अगस्त का यह आश्रम-स्थान।
जिनने इंद्रपद से किया ‘नहुष’ को क्षण में म्लान।।36।।
उनके छवि के धूम को छू और पाके गन्ध।
लगता मुझको बढ़ रहा सतोगुण से सम्बंध।।37।।
सातकर्णि मुनिका वहाँ पम्पासर तालाब।
मेघ घिरे से चंद्र सम वह दिखते जहाँ आप।।38।।
कुश पर ही करते थे ऋषि, वन-मृग सँग निर्वाह।
तब बल से डर इन्द्र ने भेजी पाँच अपस्रायें।।39।।
मुनि के जल प्रासाद का वाद्य घोष औं गान।
से हो गया प्रभावित क्षण भर पुष्प विमान।।40।।
© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈