डॉ. मुक्ता
(डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं। डॉ मुक्ता जी के ये शब्द “अनजान बालिका, दुल्हन नहीं ’मोलकी’ ” कहलाती है। निःशब्द हूँ । बेहतर है आप स्वयं यह कविता पढ़ कर टिप्पणी दें।)
औरत का वजूद ना कभी था
ना होगा कभी
उसे समझा जाता है कठपुतली
मात्र उपयोगी वस्तु
उपभोग का उपादान
जिस पर पति का एकाधिकार
मनचाहा उपयोग करने के पश्चात्
वह फेंक सकता है बीच राह
और घर से बेदखल कर
उस मासूम की
अस्मत का सौदा
किसी भी पल अकारण
नि:संकोच कर सकता है
आजकल
भ्रूण-हत्या के प्रचलन
और घटते लिंगानुपात के कारण
लड़कियों की खरीदारी का
सिलसिला बेखौफ़ जारी है
चंद सिक्कों में
खरीद कर लायी गयी
रिश्तों के व्याकरण से
अनजान बालिका
दुल्हन नहीं ’मोलकी’ कहलाती
और वह उसकी जीवन-संगिनी नहीं
सबकी सम्पत्ति समझी जाती
जिसे बंधुआ-मज़दूर समझ
किया जाता
गुलामों से भी
बदतर व्यवहार
भूमंडलीकरण के दौर में
‘यूज़ एंड थ्रो’
और‘तू नहीं और सही’
का प्रचलन सदियों से
बदस्तूर जारी है
और यह है रईसज़ादों का शौक
जिसमें ‘लिव-इन’ व ‘मी-टू’ ने सेंध लगा
लील लीं परिवार की
अनन्त,असीम खुशियां
और पर-स्त्री संबंधों की आज़ादी
कलंक है भारतीय संस्कृति पर
जाने कब होगा इन बुराईयों का
समाज से अंत ‘औ’ उन्मूलन
शायद! यह लाइलाज हैं
नहीं कोई इनका समाधान
© डा. मुक्ता
पूर्व निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी, #239,सेक्टर-45, गुरुग्राम-122003 ईमेल: drmukta51@gmail.com
बहुत बढिया…
रिषतों के व्याकरण से…
I liked this phrase very much.. please excuse me as I don’t have hindi keyboard, there are mistakes in what I have written in Hindi.
बहुत बढ़िया!