डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके अप्रतिम कालजयी दोहे – शिमला संदर्भ ।)
साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 79 – दोहे – शिमला संदर्भ
सुबह धूप घुटनों चली, दोपहर हुई जवान।
शिमला सोयी शाम को, करके कन्यादान।।
ऊंचे नीचे रास्ते, उखड़ी उखड़ी सांस।
शिमला तेरी गली में, गड़ी गजब की फांस।।
सुंदर सुंदर दृश्य है, सुंदर-सुंदर लोग।
शिमला क्या तुझसे कहें, नदी नाव संयोग।।
सुजन सुमन संयोगवश, मिलता है परिवेश।
शिमला तू तो लग रहा, गंध प्रिया का देश।।
बैठ पराए देश में, अपने आते याद।
लख शिमला के चांदनी, मन करता संवाद।।
सर -सर चलती पवनिया, फर- फर उड़ते केश।
शिमला की सरगोशियां, प्रियतम का संदेश।।
घाटी घाटी गूंजती, देवदारू दरबान।
सुनो शिमला राधिके, कान्हा का आव्हान।।
© डॉ राजकुमार “सुमित्र”
112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
बेहतरीन अभिव्यक्ति