॥ श्री रघुवंशम् ॥
॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’॥
☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #13 (41 – 45) ॥ ☆
सर्गः-13
और सुतीक्ष्ण मुनि कर रहे जो चरित्र उद्यात।
पंच-अग्नि तप-साधना सूर्य ताप के साथ।।41।।
इंद्र सशंकित हो उठे देख तदोबल ध्यान।
पर न अपसरा कर सकीं पथ से विमुख निदान।।42।।
वाम भुजा ऊँची उठा जय माला को धार।
अन्य जो खुजलाती हिरण करती मम सत्कार।।43।।
मौन मुनी ने सिर हिला कर प्रणाम स्वीकार।
हटा दृष्टि मम यान से रवि को रहे निहार।।44।।
यह आश्रम शरभंग का तपः पूत स्थान।
जिनने समिधा बनाये अपने तन मन प्राण।।45।।
© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈