प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी द्वारा रचित एक भावप्रवण ग़ज़ल “ये जीवन है आसान नहीं”। हमारे प्रबुद्ध पाठक गण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे। )
☆ काव्य धारा 71 ☆ गजल – ’’ये जीवन है आसान नहीं’’ ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆
ये जीवन है आसान नहीं जीने को झगड़ना पड़ता है
चलने की गलीचों पै पहले तलवों को रगड़ना पड़ता है।
मन के भावों औ’ चाहों को दुनिया ने किसी के कब समझा
कुछ खोकर भी पाने को कुछ, दर-दर पै भटकना पड़ता है।
सर्दी की चुभन, गर्मी की जलन, बरसात का गहरा गीलापन
आघात यहाँ हर मौसम का हर एक को सहना पड़ता है।
सपनों में सजायी गई दुनियाँ, इस दुनियाँ में मिलती है कहाँ ?
अरमान लिये बोझिल मन से संसार में चलना पड़ता है।
देखा है बहारों में भी यहाँ कई फूल-कली मुरझा जाते
जीने के लिये औरों से तो क्या ? खुद से भी झगड़ना पड़ता है।
तर होके पसीने से बेहद, अवसर को पकड़ पाने के लिये
छूकर के भी न पाने की कसक से कई को तड़पना पड़ता है।
अनुभव जीवन के मौन मिले लेकिन सबको समझाते हैं
नये रूप में सजने को फिर से, सड़कों को उखड़ना पड़ता है।
वे हैं ’विदग्ध’ किस्मत वाले जो मनचाहा पा जाते है
वरना ऐसे भी कम हैं नहीं जिन्हें बनके बिगड़ना पड़ता है।
© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी भोपाल ४६२०२३
मो. 9425484452
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