॥ श्री रघुवंशम् ॥
॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’॥
☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #13 (61 – 65) ॥ ☆
सर्गः-13
सरयू जिसके तट गड़े यूपस्तंभ अनेक।
अयोध्या में इक्ष्वाकु नृप हुये एक से एक।।61अ।।
अनके पुण्य-प्रताप से होकर अधिक पवित्र।
धारण करती जल मधुर अमृत सदृश विचित्र।।61ब।।
सिकता मय तट मुझे तो दिखता गोदी रूप।
जल माता के दूध सा कोसल हित अनुरूप।।62।।
बरसों बाद प्रवास से लौटे मुझको आज।
माँ कौशल्या सा तरल स्नेहित देती हाथ।।63।।
उड़ती दिखती शाम सी तामवर्ण की धूल।
इससे लगता मिलन को आये भरत अनुकूल।।64।।
पितु-आज्ञा-पालक भरत देंगे वह व्यवहार।
जैसा लक्ष्मण ने मैं जब लौटा राक्षस मार।।65अ।।
तुम्हें सुरक्षित था मुझे लौटाया साभार।
राज लक्ष्मी भी सौंपेंगे भरत भी उसी प्रकार।।65ब।।
© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈