श्री श्याम खापर्डे
(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “# बेबस पिता हूँ #”)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 71 ☆
☆ # बेबस पिता हूँ # ☆
यह कैसा समय आ गया?
जो रिश्तों को खा गया
संबंध गौण हो गये
हम मौन हो गये
वो कहते रहे
हम सुनते रहे
जीना अभिशाप हो गया
बोलना तो पाप हो गया
किससे करें फरियाद
क्यों मैं होठों को सीता हूँ
मैं खामोश हूँ
क्योंकि मैं एक बेबस पिता हूँ।
बच्चे कहते हैं
आपने अलग क्या किया
जो सब करते हैं
वो ही तो आप ने किया
मैंने कहा-
पढ़ाया लिखाया, काबिल बनाया
वो बोले- वो आपका फ़र्ज़ था
मैंने कहा-
अच्छी परवरिश दी
वो बोले-
बाप बने हो तो
आप पे हमारा यह कर्ज़ था
मैंने कहा-
तुम्हारी शादी ब्याह किया
वो बोले-
आप को खेलने को
नाती पोते चाहिए थे
मैंने कहा-
छोटा सा उपवन सजाया
वो बोले-
ताकि बुढ़ापे को सुरक्षित कर सको
आपने सब कुछ अपने लिए किया
बस हर बार हमारा इस्तेमाल किया
मै कैसे कहूँ कि
मैं कैसे जीता हूँ
क्योंकि मैं एक बेबस पिता हूँ।
अब तो ताने, उलाहने
हर रोज सुनता हूँ
बची हुई जिंदगी के
हार मे उसे बुनता हूँ
अब जीवन के
इस पड़ाव पर कहाँ जाऊँगा
परिवार को छोड़
खुशियाँ कहाँ से लाऊँगा
बस जीना है,
इसलिए जीता हूँ
हाँ ! भाई
मैं एक बेबस पिता हूँ /
© श्याम खापर्डे
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