श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी के साप्ताहिक स्तम्भ “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है दोहाश्रित सजल “जल बिन करते आचमन… ”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।
मनोज साहित्य # 24 – दोहाश्रित सजल – जल बिन करते आचमन… ☆
समांत- ऊल
पदांत- अपदांत
मात्राभार- 24
मेघ कहीं दिखते नहीं, राह गए हैं भूल।
अंतर्मन में चुभ रहे, बेमौसम के शूल।।
उल्टी पुरवा बह रही, हरियाली वीरान।
प्यासी धरती है गगन, बिन जल है निर्मूल।।
मानसून को देखकर, मानव है बेचैन।
हरे-भरे सब वृक्ष भी, सूख गए जड़-मूल।।
कृषक देखता मेघ को, रोपें कैसे धान।
खेतों में सूखा पड़ा, है उड़ती बस धूल।।
अखबारों में है छपा, उत्तर दक्षिण बाढ़।
मध्य प्रांत सूखा पड़ा, मौसम है प्रतिकूल।।
जल बिन करते आचमन, अंदर श्रद्धा भक्ति,
भादों में जन्माष्टमी, रहे कृष्ण हैं झूल।।
सभी बाग उजड़े पड़े, देख सभी हैरान ।
पूजन अर्चन के लिए, नहीं मिलें अब फूल।।
वर्षा ऋतु का आगमन, जल की नहीं फुहार ।
पूजन शिव परिवार का, हो वर्षा अनुकूल।।
इन्द्र देव से प्रार्थना, भेजो काले मेघ।
कृपा दृष्टि चहुँ ओर हो, यही मंत्र है मूल।।
© मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
10 जुलाई 2021
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