श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”  महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर कुछ “दोहे ”)

☆  तन्मय साहित्य  #123 ☆

☆ अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस विशेष – “दोहे ” ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

मात-पिता की लाड़ली, बच्चों का है प्यार।

संबल है पति की सखी, सुखी करे संसार।।

 

लक्ष्मी बन  घर में भरे, मंदिर जैसे  रंग।

होता है श्री हीन नर, बिन नारी के संग।।

 

इम्तिहान हर डगर पर, मातृशक्ति के नाम।

विनत भाव सेवा करे,  हो करके निष्काम।।

 

घर में गृहणी बन रहे,  बाहर है  तलवार।

जब जैसी बहती हवा, वैसी उसकी धार।।

 

नारी को समझें नहीं, कोई भी कमजोर।

नारी  के ही  हाथ में, पूरे  जग  की डोर।।

 

जीवन के  हर  क्षेत्र  में, है  विशिष्ट  अवदान।

मातृशक्ति नित गढ़ रही, नित नूतन प्रतिमान।।

 

करुणा  ममता  प्रेम का, मधुरिम सा  संचार।

निर्मल जल कल-कल बहे, बहता ऐसा प्यार।।

 

पर्वोत्सव व्रत-धर्म का,  पारम्परिक प्रवाह।

नारी के बल पर टिकी, ये सत्पथ की राह।।

 

सहनशक्ति धरती सदृश, ममतामय आकाश।

चंदा   सी   शीतलमना,   सूर्योदयी   प्रकाश।।

 

दीपक ने आश्रय दिया, खुश है बाती – तेल।

मेल-जोल  सद्भाव का,  उज्वलतम यह मेल।।

 

संस्कृति की संवाहिका, संस्कारों की खान।

प्रवहमान  गंगा  सदृश, फूलों  सी  मुस्कान।।

 

लछमी  जैसी  चंचला, शारद  सी  गंभीर।

दुर्गा सी तेजस्विनी, शीतल जल की झीर।।

 

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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