श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं.  “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत हैं  एक भावप्रवण  रचना “हर्षित हो गाने लगीं….। आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 112 ☆

☆ हर्षित हो गाने लगीं…

भँवरे गुँजन कर रहे, कोयल गाये गीत

मन को मोहक लग रही, देखो सरसों पीत

 

दुल्हन सी लगती धरा, लो आ गया बसंत

ज्ञान सभी को बांटते, सांचे साधू संत

 

कुदरत खूब बिखेरती, नित नवरूप अनूप

हरियाली चहुँ ओर है, खिली खिली सी धूप

 

खग अंबर में नाचते, भँवरे गायें गीत

खूब चहकतीं तितलियाँ, दिखा दिखा कर प्रीत

 

प्रियतम को ज्यूँ मिल गया, अपने मन का मीत

हर्षित हो गाने लगीं, ऋतु बसंत के गीत

 

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈
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Subedarpandey

बहुत सुंदर प्रस्तुति, प्राकृतिक सौंदर्य से ओत प्रोत बधाई अभिनंदन आदरणीय श्री