॥ श्री रघुवंशम् ॥
॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’॥
☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #14 (21 – 25) ॥ ☆
रघुवंश सर्ग : -14
कर बनवास समाप्त यों किया राज-पद प्राप्त।
पूरी कर पितृआज्ञा, जो था उनको आप्त।।21अ।।
अर्थ धर्म और काम प्रति ज्यों था सम व्यवहार।
अनुजों से भी राम का प्रेम था उसी प्रकार।।21ब।।
सब कृतिकाओं से था ज्यों कार्तिकेय को प्यार।
त्यों ही सब माताओं से था समान व्यवहार।।22।।
लोभ त्याग कर प्रजा को किया सुखी सम्पन्न।
विघ्न न थे कोई कहीं सब थे मुदित प्रसन्न।।23अ।।
प्रजा मानती थी पिता उन्हें, पा सद्-उपदेश।
और पुत्रवत क्योंकि वे हरते उनके क्लेश।।23ब।।
नागरिकों का ध्यान रख करते थे सबकाज।
थीं सीता के रूप में राज-लक्ष्मी विराज।।24।।
राजमहल में रंगे थे वन के कई प्रसंग।
जिन्हें कभी वे देखते थे सब सुख के संग।।25अ।।
दण्डकवन में पाये दुख को भी वे कर याद।
पाते थे सुख, गये दिनों के करते संववाद।।25ब।।
© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈