श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

प्रत्येक बुधवार और रविवार के सिवा प्रतिदिन श्री संजय भारद्वाज जी के विचारणीय आलेख एकात्मता के वैदिक अनुबंध : संदर्भ – उत्सव, मेला और तीर्थयात्रा   श्रृंखलाबद्ध देने का मानस है। कृपया आत्मसात कीजिये। 

? संजय दृष्टि – एकात्मता के वैदिक अनुबंध : संदर्भ- उत्सव, मेला और तीर्थयात्रा भाग – 35 ??

द्वारका धाम-

भारत के पश्चिम में गुजरात के द्वारका जनपद में स्थित है द्वारका धाम। यह अरब सागर और गोमती नदी के किनारे बसा हुआ है। द्वारका को भगवान श्रीकृष्ण ने बसाया था। जरासंध ने अनेक बार मथुरा पर आक्रमण किया था। हर बार वह श्रीकृष्ण के हाथों परास्त हुआ। योगेश्वर ने भविष्य का विचार किया। इस विचार का साकार रूप था, सागर के बीच अजेय-अभेद्य द्वारका नगरी का निर्माण। माना जाता है कि कालांतर में श्रीकृष्ण की द्वारका ने जलसमाधि ले ली। वर्तमान द्वारका उसी क्षेत्र में बाद में विकसित हुई। श्रीकृष्ण की द्वारका को ढूँढ़ने का अभियान चला। विभिन्न अनुसंधानों में अरब सागर के गर्भ में प्राचीन नगरी के कुछ प्रमाण अबतक मिले हैं।  

द्वारका का रणछोड़ जी का मंदिर सुप्रसिद्ध है। भगवान का रणछोड़ होना भी वैदिक दर्शन का अनुपम उदाहरण है।

योगेश्वर श्रीकृष्ण के वध के लिए जरासंध ने  कालयवन को भेजा। विशिष्ट वरदान के चलते कालयवन को परास्त करना सहज संभव न था। शूरवीर मधुसूदन युद्ध के क्षेत्र से कुछ यों निकले कि कालयवन को लगा, वे पलायन कर रहे हैं। उसने भगवान का पीछा करना शुरू कर दिया।

कालयवन को दौड़ाते-छकाते श्रीकृष्ण उसे उस गुफा तक ले गए जिसमें ऋषि मुचुकुंद तपस्या कर रहे थे। अपनी पीताम्बरी ऋषि पर डाल दी। उन्माद में कालयवन ने ऋषिवर को ही लात मार दी। विवश होकर ऋषि को चक्षु खोलने पड़े और कालयवन भस्म हो गया। साक्षात योगेश्वर की साक्षी में ज्ञान के सम्मुख  अहंकार को भस्म तो होना ही था।

वस्तुत: श्रीकृष्ण भलीभाँति जानते थे कि आज तो वह असुरी शक्ति से लोहा ले लेंगे पर कालांतर में जब वे पार्थिव रूप में धरा पर नहीं होंगे और इसी तरह के आक्रमण होंगे तब प्रजा का क्या होगा? ऋषि मुचुकुंद को जगाकर गिरधर आमजन में अंतर्निहित सद्प्रवृत्तियों को जगा रहे थे, किसी कृष्ण की प्रतीक्षा की अपेक्षा सद्प्रवृत्तियों की असीम शक्ति का दर्शन करवा रहे थे।

श्रीकृष्ण स्वार्थ के लिए नहीं सर्वार्थ के लिए लड़ रहे थे। यह ‘सर्व’ समष्टि से तात्पर्य रखता है। सर्वार्थ का विचार वही कर सकता है जिसने एकात्म दर्शन का वरण किया हो। जिसे सबका दुख,.अपना दुख लगता हो। यही कारण था कि रणकर्कश ने रणछोड़ होना स्वीकार किया।

द्वारका धाम में आदिशंकराचार्य द्वारा स्थापित  शारदापीठ है।

क्रमश: ….

©  संजय भारद्वाज

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
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Rita Singh

यकता तो बहुत पुरानी है और भारतीय संभवतः इसे भूल भी गए पर अब सदप्रवृत्तियों को जगाने के लिए ही इस कलयुग में योगीराज मोदी जैसे नेता धरती पर आए हैं।

अलका अग्रवाल

आम जनता में अंतर्निहित सद्प्रवृत्तियों को जगाने के लिए ही श्रीकृष्ण ने ऋषि मुचकुंद को जगाने का प्रयत्न किया था। द्वारका धाम तीर्थ का बहुत सुंदर वर्णन।

लतिका

यह प्रसंग हर किसी को प्रेरणा देता है। सार्थक विवेचन!😊💐

माया कटारा

द्वारका धाम की वैशिष्ट्यपूर्ण उपलब्धि – श्री कृष्ण भगवान संबंधी विशेषकर योगेश्वर रूप का सार्थक विरेचन – अहंकारी का पराभव – एक आध्यात्मिक दस्तावेज़- संग्रहणीय ,अभिनंदन