॥ श्री रघुवंशम् ॥
॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’॥
☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #15 (36 – 40) ॥ ☆
रघुवंश सर्ग : -15
शत्रुघाती और सुबाहु को मथुरा विदिशा राज।
दिया शत्रुध्न ने स्वतः बन्धु मिलन के काज।।36।।
वापस होते वे न गये वाल्मीकि मुनि पास।
जिससे आश्रम में न हो जप-तप में संत्रास।।37।।
पहुँचे जब साकेत वे सजे थे वन्दनवार।
लवणासुर पर विजय से जन थे मुदित अपार।।38।।
देखा राज सभा में थे राम सभासद साथ।
जो सीता को तज थे बस पृथ्वी नाथ उदास।।39।।
विजय प्राप्त कर भाई को करते विनत प्रणाम।
विष्णु से इन्द्र मिले थे ज्यों, त्यों प्रसन्न थे राम।।40।।
© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈