☆ ‘२१ श्रेष्ठ बुंदेली लोक कथाएँ मध्यप्रदेश’’ – संपादक : आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆ समीक्षक – प्रो. (डॉ.) साधना वर्मा ☆
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कृति विवरण : २१ श्रेष्ठ बुंदेली लोक कथाएँ मध्य प्रदेश, संपादक आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’, प्रथम संस्करण २०२२,
आकार २१.५ से.मी.x १४ से.मी., आवरण बहुरंगी लेमिनेटेड पेपरबैक, पृष्ठ संख्या ७०, मूल्य १५०/-, प्रकाशक डायमंड पॉकेट बुक्स नई दिल्ली।
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२१ श्रेष्ठ बुंदेली लोक कथाएँ मध्यप्रदेश : लोक में नैतिकता अब भी हैं शेष – प्रो. (डॉ.) साधना वर्मा, सेवानिवृत्त प्राध्यापक
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लोक कथाएँ ग्राम्यांचलों में पीढ़ी दर पीढ़ी कही-सुनी जाती रहीं ऐसी कहानियाँ हैं जिनमें लोक जीवन, लोक मूल्यों और लोक संस्कृति की झलक अंतर्निहित होती है। ये कहानियाँ श्रुतियों की तरह मौखिक रूप से कही जाते समय हर बार अपना रूप बदल लेती हैं। कहानी कहते समय हर वक्ता अपने लिए सहज शब्द व स्वाभाविक भाषा शैली का प्रयोग करता है। इस कारण इनका कोई एक स्थिर रूप नहीं होता। इस पुस्तक में हिंदी के वरिष्ठ साहित्य साधक आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ने देश के केंद्र में स्थित प्रांत मध्य प्रदेश की एक प्रमुख लोकभाषा बुंदेली में कही-सुनी जाती २१ लोक कथाएँ प्रस्तुत की हैं। पुस्तकारंभ में प्रकाशक नरेंद्र कुमार वर्मा द्वारा भारत की स्वतंत्रता के ७५ वे वर्ष में देश के सभी २८ राज्यों और ९ केंद्र शासित प्रदेशों से संबंधित नारी मन, बाल मन, युवा मन और लोक मन की कहानियों के संग्रह प्रकाशित करने की योजना की जानकारी दी है।
पुरोवाक के अन्तर्गत सलिल जी ने पाठकों की जानकारी के लिये लोक कथा के उद्गम, प्रकार, बुंदेली भाषा के उद्भव तथा प्रसार क्षेत्र की लोकोपयोगी जानकारी दी है। लोक कथाओं को चिरजीवी बनाने के लिए सार्थक सुझावों ने संग्रह को समृद्ध किया है। लोक कथा ”जैसी करनी वैसी भरनी” में कर्म और कर्म फल की व्याख्या है। लोक में जो ‘बोओगे वो काटोगे’ जैसे लोकोक्तियाँ चिरकाल से प्रचलित रही हैं। ‘भोग नहीं भाव’ में राजा सौदास तथा चित्रगुप्त जी की प्रसिद्ध कथा वर्णित है जिसका मूल पदम् पुराण में है। यहाँ कर्म में अन्तर्निहित भावना का महत्व प्रतिपादित किया गया है। लोक कथा ‘अतिथि देव’ में गणेश जन्म की कथा वर्णित है. साथ ही एक उपकथा भी है जिसमें अतिथि सत्कार का महत्व बताया गया है। ‘अतिथि देवो भव’ लोक व्यवहार में प्रचलित है ही। सच्चे योगी की पहचान संबंधी उत्सुकता को शांत करने के लिए एक राज द्वारा किए गए प्रयास और मिली सीख पर केंद्रित है लोक कथा ‘कौन श्रेष्ठ’। ‘दूधो नहाओ, पूतो फलो’ का आशीर्वाद नव वधुओं के घर के बड़े देते रहे हैं। छठ मैया का पूजन बुंदेलखंड में बहुत लोक मान्यता रखता है। यह लोक कथा छठ मैया पर ही केंद्रित है।
लोक कथा ‘जंगल में मंगल’ में श्रम की प्रतिष्ठा और राज्य भक्ति (देश भक्ति) के साथ-साथ वृक्षों की रक्षा का संदेश समाहित है। राजा हिमालय की राजकुमारी पार्वती द्वारा वनवासी तपस्वी शिव से विवाह करने के संकल्प और तप पर केंद्रित है लोक कथा ‘सच्ची लगन’। यह लोक कथा हरतालिका लोक पर्व से जुडी हुई है। मंगला गौरी व्रत कथा में प्रत्युन्नमतित्व तथा प्रयास का महत्व अंतर्निहित है। यह संदेश ‘कोशिश से दुःख दूर’ शीर्षक लोक कथा से मिलता है। आम जनों को अपने अभावों का सामना कर, अपने उज्जवल भविष्य के लिए मिल-जुलकर प्रयास करने होते हैं। यह प्रेरक संदेश लिए है लोककथा ‘संतोषी हरदम सुखी’। ‘पजन के लड्डू’ शीर्षक लघुकथा में सौतिया डाह तथा सच की जीत वर्णित है। किसी को परखे बिना उस पर शंका या विश्वास न करने की सीख लोक कथा ‘सयाने की सीख’ में निहित है।
भगवान अपने सच्चे भक्त की चिंता स्वयं ही करते हैं, दुनिया को दिखने के लिए की जाती पिजा से प्रसन्न नाहने होते। इस सनातन लोक मान्यता को प्रतिपादित करती है लोक कथा ‘भगत के बस में हैं भगवान’। लोक मान्यता है की पुण्य सलिला नर्मदा शिव पुत्री हैं। ‘सुहाग रस’ नामित लोक कथा में भक्ति-भाव का महत्व बताते हुए इस लोक मान्यता के साथ लोक पर्व गणगौर का महत्व है। मध्य प्रदेश के मालवांचल के प्रतापी नरेश विक्रमादित्य से जुडी कहानी है ‘मान न जाए’ जबकि ‘यहाँ न कोई किसी का’ कहानी मालवा के ही अन्य प्रतापी नरेश राजा भोज से संबंधित है। महाभारत के अन्य पर्व में वर्णित किन्तु लोक में बहु प्रचलित सावित्री-सत्यवान प्रसंग को लेकर लिखी गयी है ‘काह न अबला करि सकै’। मनुष्य को किसी की हानि नहीं करनी चाहिए और समय पर छोटे से छोटा प्राणी भी काम आ सकता है। यह कथ्य है ‘कर भला होगा भला’ लोक कथा का। गोंडवाना के पराक्रमी गोंड राजा संग्रामशाह द्वारा षडयंत्रकारी पाखंडी साधु को दंडित करने पर केंद्रित है लोक कथा ‘जैसी करनी वैसी भरनी’। ‘जो बोया सो काटो’ में वर्णित कहानी पशु-पक्षियों की दाना-पानी आदि सुविधाओं का ध्यान देने की सीख देती है। ताकतवर को अपनी ताकत का उपयोह निर्बलों की सहायता करने के लिए करना चाहिए तथा कंबलशाली भी मिल-जुलकर अधिक बलशाली को हरा सकते हैं यह सबक कहानी ‘अकल बड़ी या भैंस’ में बताया गया है। संकलन की आखिरी कहानी ‘कर भला होगा भला’ में बुंदेलखंड में अति लोकप्रिय नर्मदा-सोन-जुहिला नदियों की प्रेम कथा है। यह कहानी प्रेम और वासना के अंतर को इंगित करते हुए त्याग और लोक हित की महत्ता बताती है।
इस संकलन की कहानियाँ मध्य प्रदेश के विविध अंचलों में लोकप्रिय होने के साथ लोकोपयोगी तथा संदेशवाही भी हैं। कहानियों में सलिल जी ने अपनी और से कथा-प्रवाह, रोचकता, सन्देशपरकता, सहज बोधगम्यता तथा टटकेपन के पाँच तत्वों को इस तरह मिलाया है कि एक बार पढ़ना आरंभ करने पर बीच में छोड़ते नहीं बनता। कहानियों का शिल्प तथा संक्षिप्तता पाठक को बाँधता है। लोक कथाओं के शीर्षक कथानक से जुड़े हुए और मुहावरों पर आधृत है। इस संकलन को माध्यमिक कक्षाओं में पाठ्य पुस्तक के रूप होना चाहिए ताकि बच्चे अपने अतीत, परिवेश, लोक मान्यताओं और पर्यावरण से परिचित हो सकेंगे। लोक कथाओं में अंतर्नित संदेश कहानी में इस तरह गूंथे गए हैं कि वे बोझिल नहीं लगते। सलिल जी हिंदी गद्य-पद्य की लगभग सभी विधाओं में लगभग ४ दशकों से निरंतर सृजनरत आचार्य संजीव ‘सलिल’ ने लोक कथाओं का केवल संचयन नहीं किया है। उन्होंने इनका पुनर्लेखन इस तरह किया है कि ये उनकी अपनी कहानियाँ बन गयी हैं। संकलन में पाठ्यशुद्धि (प्रूफरीडिंग) पर कुछ और सजगता होना चाहिए। मुद्रण और कागज़ अच्छा है। आवरण पर ग्वालियर किले के मान मंदिर की आकर्षक छवि है। लोक कथाओं के साथ बुंदेलखं के वन्यांचलों के अप्रतिम सौंदर्य का चित्र आवरण के लिए अधिक उपयुक्त होता। सारत:, यह संकलन हिंदी भाषी क्षेत्र के हर विद्यालय के पुस्तकालय में होना चाहिए। लेखक और प्रकाशक इस सारस्वत अनुष्ठान हेतु साधुवाद के पात्र हैं।
प्रो. (डॉ.) साधना वर्मा, सेवानिवृत्त प्राध्यापक
संपर्क : २०४ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈