(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जिन्होने साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा” शीर्षक से यह स्तम्भ लिखने का आग्रह स्वीकारा। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। उनका पारिवारिक जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं।
आज प्रस्तुत है श्री शंकर शरण जी की पुस्तक “भारतीय इतिहास दृष्टि और मार्क्सवादी लेखन” की समीक्षा।
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा# 113 ☆
☆ “भारतीय इतिहास दृष्टि और मार्क्सवादी लेखन” – श्री शंकर शरण ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆
पुस्तक.. भारतीय इतिहास दृष्टि और मार्क्सवादी लेखन
लेखक.. शंकर शरण
प्रकाशक.. कृति कृति प्रकाशन कोलकाता
मूल्य 560 रु
पृष्ठ..224
भारतीय संस्कृति में आत्म प्रदर्शन को बहुत अच्छा नहीं माना जाता था यही कारण है कि कालिदास जैसे महान लेखकों की जीवनी तक सुलभ नहीं है. इसलिये तटस्थ वास्तविक भारतीय इतिहास अलिखित रहा.अतीत पर गर्व करना मनुष्य की आदत रही है जिसका शासन रहा उसके महत्व को अधिक प्रदर्शित करते हुए तोड़फोड़ कर इतिहास लिखे गए.
एनसीईआरटी नई दिल्ली के प्रोफेसर शंकर शरण ने बहुत तार्किक और संदर्भ सहित भारतीय इतिहास दृष्टि, कार्ल की भारत दृष्टि, इतिहास लेखन में राजनीति, धर्म और सांप्रदायिकता, दोहरे मानदंडों का घालमेल, कवि निराला और रामविलास शर्मा,भूमिका,तथा
उपसंहार इन खंडो में यह बहुत महत्वपूर्ण पुस्तक लिखी है। आजादी के बाद से देश के एकेडमिक संस्थाओं में मार्क्सवादी विचारधारा के समर्थकों का प्रभाव रहा जिसके चलते भारतीय इतिहास का जो लेखन किया गया उसमें मार्क्सवादी विचारधारा का प्रभाव रहा. इतिहास वास्तविकता से भिन्न रूप में वर्णित हुआ. देश की मिली जुली संस्कृति का श्रेय इन इतिहासकारों ने इस्लाम को दिया जबकि वास्तविकता यह है कि इस्लामी शासकों ने कोई कसर नहीं छोड़ी की हिंदू संस्कृति का विनाश कर केवल इस्लाम को ही एक धर्म के रूप में स्थापित किया जाए.दरअसल यह हिंदू संस्कृति एवं धर्म की विशेषता ही है की इन नितांत दुष्कर तथा कठिन परिस्थितियों में भी हिंदू संस्कृति जीवित बनी रही. इसी तरह युद्धों के वर्णन, अंग्रेज तथा मुगल शासको की राज व्यवस्था के इतिहास लेखन में भी हिंदूवाद की उपेक्षा की गई है, जिसकी ओर तार्किक तथ्यों के आधार पर इस पुस्तक में सविस्तार वर्णन है. पुस्तक पठनीय है व सन्दर्भों के लिये महत्वपूर्ण है.
लोगो को इतिहासकारों द्वारा यह बताया ही नही गया की निराला ने रामायण पर 20 खंडों में टीका लिखी है महाराणा प्रताप भी इस भक्त प्रहलाद भक्त ध्रुव पर पूरे पूरे उपन्यास लिखें इनके अलावा निराला के विस्तृत निबंध ओं लेखों के शीर्षक ही देख ले तो तुलसीकृत रामायण में अद्वैत तत्व विज्ञान और गोस्वामी तुलसीदास श्री देव राम कृष्ण परमहंस युग अवतार भगवान श्री राम कृष्ण भारत में श्री राम कृष्ण अवतार आदि लेख उन्हीं के हैं किंतु उन्हें इतिहासकारों ने मार्क्सवादी विचारधारा का कवि ही निरूपित किया है इस तरह के शुद्ध पूर्ण तथ्य इस पुस्तक में उजागर किए गए हैं.
टिप्पणी… विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈