॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #16 (1 – 5) ॥ ☆

रघुवंश सर्ग : -16

फिर सात भ्राताओं ने ज्येष्ठ कुश को जो थे गुणी-रत्न, स्वामी बनाया।

क्योंकि ये भ्रातृत्व, रघुकुल प्रथा से था उन सबके तन और मन में समाया।।1।।

 

कृषिकार्य, गजबंध औ सेतु निर्माण, के हेतु सक्षम सभी भाइयों में।

पारंपरिक राज्य सीमाओं को कभी लाँघा नहीं, रह उदधि सम, परिधि में।।2।।

 

उन आठों दानी नृपों से हुआ राम का वंश विस्तृत, सफल और नामी।

जैसे कि मदवाही सुरदिग्गजों का सामवेद उद्भूत था अग्रगामी।।3।।

 

तब मध्य निशि में जग, कुश ने अपने शयन कक्ष में शांत दीपों के जलते।

देखी वियोगिनि अजग नारि को जो थी उस वेश में पति विरह में सी जलते।।4।।

 

उसने खड़े होके उस कुश के आगे, कि जो राज्य-स्वामी थे औ’ बंधुवाले।

तथा जिसने थे शक्र सम शत्रु जीते, के जय-घोष कर नमन हित कर सम्हाले।।5।।

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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