श्री जय प्रकाश पाण्डेय
(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में सँजो रखा है।आज प्रस्तुत है एक विचारणीय संस्मरण “अच्छा ही हुआ…! ”।)
☆ संस्मरण # 133 ☆ अच्छा ही हुआ…! ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆
मेरे व्यंग्य के पहले गुरु आदरणीय हरिशंकर परसाई रहे हैं, बात उन दिनों की है जब आदरणीय श्री प्रताप सोमवंशी (संप्रति -संपादक, हिन्दुस्तान, दिल्ली) के निर्देश पर मैंने स्व हरिशंकर परसाई जी से लम्बा इंटरव्यू लिया था जो इलाहाबाद की पत्रिका ‘कथ्य रूप’ में सोमवंशी जी के संपादन में छपा था। इलाहाबाद की उस पत्रिका में छपने के कुछ साल बाद परसाई जी का निधन हो गया था। इस प्रकार ये इंटरव्यू परसाई के जीवन का अंतिम इंटरव्यू रहा। बाद में परसाई जी के चले जाने के बाद इस इंटरव्यू को साभार हंस पत्रिका ने छापा था। हालांकि, कुछ मित्रों ने मुझ पर व्यंग्य भी किया था, कि आप अभी उनका इंटरव्यू न लेते तो शायद परसाई जी कुछ साल और जी लेते।
कुछ साल बाद भारतीय स्टेट बैंक, राजभाषा विभाग, मुंबई के महाप्रबंधक एवं “प्रयास” पत्रिका के संपादक डॉ सुरेश कांत के निर्देश पर मैंने ख्यातिप्राप्त व्यंग्यकार हरि जोशी जी का भोपाल में इंटरव्यू लिया, जिसको प्रयास पत्रिका में छपने हेतु भेजा। किन्तु, श्री सुरेश कांत जी के मन में उहापोह की हालत बनी रही और उन्होंने इस इंटरव्यू को पेंडिग में डाल दिया जो ‘प्रयास’ पत्रिका में छपने के लिए आज तक पेंडिग में पड़ा है। न तो स्टेट बैंक की प्रयास पत्रिका ने वापस किया और न ही ये छप पाया ।
मैं भी खुश हूँ कि अच्छा हुआ नहीं छपा… नहीं तो खामोंखा मित्र लोग मेरे ऊपर फिर से व्यंग्य करने लगते …..!
© जय प्रकाश पाण्डेय
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