श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
संजय दृष्टि – कविता – परितोष
आभासी कला में
वे महारथी बने रहे,
मरुस्थल में मृगतृष्णा
का दृश्य दिखाते रहे,
वह सूखी धरती पर
तरबूज की बेल बन कर
उगता रहा, फलता रहा,
दुर्भिक्ष में भी हरा रहा,
अमित परितोष का
अविरल स्रोत बना रहा,
समय साक्षी है,
मृगतृष्णा के मारों के
विदारक अंत की,
और तरबूज से मिलती
तृप्ति आकंठ की,
अपनी वृत्ति का
आकलन आप करो,
अपनी दृष्टि से अपना
निर्णय स्वयं करो..!
© संजय भारद्वाज
प्रात: 4:34 बजे, 18.4.22
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆संपादक– हम लोग ☆पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
संजयउवाच@डाटामेल.भारत
दुर्भिक्ष में हरा बना रहने वाला तरबूज़ भीषण गर्मी में भी सबकी प्यास बुझाने में सक्षम है। अप्रतिम।